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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-७६ लिए उसने (धवल राजा ने) साक्षात् अपनी धवलकीति के समान चन्द्र सदृश कान्तिवाली प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव की प्रतिमा स्थापित की // 36 / / शान्त्याचार्यस्त्रिपंचाशे सहस्र शारदामियं / माघशुक्लत्रयोदश्यां सुप्रतिष्ठः प्रतिष्ठिता // 37 // इस मन्दिर में ऋषभदेव भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा सुप्रसिद्ध शान्त्याचार्य' ने विक्रमी संवत् 1053 की माघ शुक्ला 13 के दिन की // 37 // विदग्धनृपतिः पुरा यदतुलं तुलादेर्ददौ, सुदानमवदानधोरिदमपीपलन्नाद्भुतं / यतो धवलभूपतिजिनपतेः स्वयं सात्म (जो)-, रघट्टमथ पिप्पलोपदकूपकं प्रादिशत् // 38 / / यहाँ तीसरी पंक्ति में 'स्वयं सात्मजो" के स्थान पर "स्वयमात्मनोऽ' होना चाहिए। चौथी पंक्ति में 'पिप्पलोपदकूपकं' के स्थान पर पिप्लोपदनामकं होना चाहिए क्योंकि अरघट्ट एवं कूपकं दो शब्द एक ही अर्थ में हैं। 1. ये प्रसिद्ध शान्तिसूरि थारापद्रगच्छ के होने चाहिये / इन्होंने भीनमाल के 700 श्रीमाली कुटुम्बों को जैन बनाया था। भोजराज ने इन्हें 'वादिवेताल' का विरुद दिया था। इन्होंने उत्तराध्ययनसूत्र पर टीका लिखी। धर्मशास्त्र के रचयिता भी ये ही शान्तिसूरि लगते हैं / इनका स्वर्गवास 1066 विक्रमी में हुआ।
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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