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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-५८ राता महावीरजी पड़ा। लाल रंग अनुराग का प्रतीक है और भगवान महावीर की यह रक्त वर्ण को प्रतिमा समग्र संसार पर अपना अनुग्रह प्रकट कर रही है। इसके नीचे जो लांछन है वह अपनी विशेषता रखता है। इसके पीछे का आकार तो सिंह का है एवं मुख हस्ती का है। अर्थात् यह गजसिंह का लांछन भगवान महावीर के लांछन सिंह व हस्तितुण्डी में हस्तियों की बहुतायत की ओर संकेत करता है / सिंह के हाथी का मुख होने के कारण ही इस नगरी को हस्तिकुण्डी भी कहते हैं और भगवान का प्रभासन तो देखा हो नहीं, इसके दोनों तरफ सिंह व बीच में हाथी के मुख हैं / केन्द्र में देवी की एक प्रतिमा है। यह अधिष्ठायिका देवी है। यहाँ भी हाथी के मुख एवं सिंहों को एक साथ रखा गया है। यह प्रभासन तो नया है 2006 वि. का बना हमा। पुराना इसी तरह का बना हुआ प्रभासन तो, जिस पर विक्रमी सं. 1053 का लेख अङ्कित है, गर्भगृह के पश्चिमी दरवाजे के सामने स्थित कमरे में सुरक्षित अब आइए, भमती (प्रदक्षिणा) में पश्चिम की तरफ चलें। कोट में यक्षों की पुरानी मूर्तियाँ हैं। पास के कमरे में एक पट है जिस पर यशोभद्राचार्य, बलिभद्राचार्य एवं क्षमाऋषि की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। इन तीनों आचार्यों का सम्बन्ध हस्तिकुण्डी से रहा है। इसकी प्रतिष्ठा भी प्राचार्य समुद्रसूरिजी ने सं. 2026 के मार्गशीर्ष महीने में की थी / अब देखिये यह गम्भारे के पश्चिमो दरवाजे के सामने का कमरा ! इसकी चौखट व द्वार कितने बढ़िया खुदे हुए हैं ! ये दोनों ही मन्दिर के रंग-मण्डप से लगे गम्भारे में लगे हुए थे। जीर्णोद्धार के समय इनके स्थान पर नये लगवा
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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