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________________ हस्तिकुण्डी का समाज-४५ नाना देशों से आए हुए लोगों के समक्ष राजकीय आदेश प्रसारित किया। करनिर्धारण की पद्धति इस प्रकार थी-बीस पोठों (भारवाही बैलों) के माल की बिक्री पर धर्मार्थ एक रुपया राजकोष में पहुँचता था। इसी प्रकार माल से भरी हुई गाडियों के नगरी में से गुजरने पर सबको एक रुपया कर रूप में देना अनिवार्य था (वर्तमान नगरपालिकाओं के चुंगी नाकों पर गाड़ियों द्वारा दी जाने वाली राशि की भाँति)। राठौड़ों की राजव्यवस्था एवं कर-व्यवस्था के अन्तर्गत नगर में और गांव में भी प्रत्येक घाणी और अरहट पर कर लगता था / पान खाने का रिवाज था इसलिए पान-विक्रेताओं पर कर लगता था। जुया खेलने का भी प्रचलन था एवं इस खेल को सामाजिक मान्यता थी। सरकार इसके अड्ड चलाने के लिए कर वसूल करती थी। कर की सुदृढ़ व्यवस्था थी तभी तो कुलियों व दुधारू पशुओं पर भी कर लगता था। कृषि की उपज एवं वन-सम्पदा के दोहन पर भी कर देय था। कपास, गुग्गुल, मजीठ आदि सभी वस्तुएँ राजकीय दृष्टि से कर योग्य थीं / लोग मन्दिरों के लिए धन एवं सामग्री अर्पित करते थे। स्वयं राजा धवल ने अपना पिप्पल नामक कुत्रा मन्दिर को अपित किया था। प्रत्येकं रहट से मन्दिर के लिए निश्चित मात्रा में अन्न पाता था। हस्तिकुण्डी के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि उस युग में युद्ध बहुत होते थे। सामान्यतः राज्य के विस्तार के लिए, राजा के प्रभुत्व को स्थापना के लिए और शरणागत की रक्षा करने के लिए युद्ध किए जाते थे। हस्तिकुण्डी के राजाओं ने 1. शिलालेख संख्या 318 श्लोक सं० 12 /
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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