SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हस्ति कुण्डी के प्राचार्य-२७ को समर्पित किया। ईश्वरसूरिजी ने सुधर्मा को दीक्षित कर अपना समस्त ज्ञान उसे प्रदान कर दिया। इसके बाद मुंडारा में सुधर्मा ने बदरीदेवी की आराधना की। देवी ने सुधर्मा के शरीर में अवतरित होकर उसका तिलक किया। देवो ने ही सुधर्मा का नया नाम दिया यशोभद्रसूरि / सं. 1683 में लिखित संस्कृत-चरित्र से इस बात की पुष्टि होती है। सं. 668 में 11 वर्ष की अल्पायु में ही इन्हें मुडारा नगर में सूरिपद की प्राप्ति हुई। ... संवत् नवसैं है अड़सठे सूरि पदवी जोय / बदरी सुरी हाजर रहें पुन्य प्रबल जस जोय // ' (दीपविजयजी कृत सोहमकुलरत्नपट्टावलिरास वि.सं. 1877) पर 1683 वि. में लिखित मुनिसुन्दरसूरि कृत उपदेशरत्नाकर में उन्हें पाली नगरी में सूरि पद की प्राप्ति की बात कही गई है। पल्लीपुर्यां श्री यशोभद्रसूरेराचार्यपदावसरे संवत् 666 में इन्होंने पाली एवं मुण्डारा में प्रतिष्ठाएँ करवाई एवं अपनी विद्या का परिचय दिया। सांडेराव में अधिक जनसमुदाय के कारण घी समाप्त हो गया था तो गुरु ने अपने विद्याबल से पाली के धनाशाह सेठ की दुकान से घी मँगवा कर सांडेराव में घी के पात्र भर दिये थे। 1. बदरीदेवी का मंदिर मुडारा (पाली) गांव में आज भी अपने भव्य परिवेश को लेकर खड़ा है।
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy