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________________ हस्ति कुण्डी की ऐतिहासिक सामग्री-१३ जीर्ण मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया वह ऋषभदेव भगवान का ही था। इस बात की पुष्टि श्लोक सं. 36 शिलालेख सं. 318 भी करता है विदग्धनपकारिते। 'कारित' का अर्थ करवाई याने प्रतिष्ठा करवाई न कि मंदिर बनवाया। अभिप्राय यह हुआ कि मंदिर 973 में जीर्ण हो गया था क्योंकि मंदिर का निर्माण तो पार्श्वनाथ के तीसवें पट्टधर सिद्धसूरि के उपदेश से श्रावक वीरदेव ने सं. 360 विक्रमी में करवाया था। मेरी मान्यता यह है कि यह शिलालेख 1053 वि. का है एवं उस वर्ष जो प्रतिष्ठा हुई है उसमें ऋषभदेव भगवान की पुरातन प्रतिमा को ही पुनः स्थापित किया गया है। अतः विदग्धराज ने ही ऋषभदेव भगवान की मूति की प्रतिष्ठा करवाई थी। 80 वर्ष बाद पुनः प्रतिष्ठा स्थापना करवाने की क्या आवश्यकता पड़ी ? इन 80 वर्षों का समय तो हस्तिकुण्डी के राठौड़ों के उत्कर्ष का था। अतः मंदिर को कोई अांच भी नहीं आ सकती थी फिर इस श्लोक सं. 33 में केवल ऋषभदेव भगवान की मूर्ति की मूलनायक के रूप में प्रतिष्ठा कराने का वर्णन है। उस समय लिखी प्रशस्ति में विदग्धराज द्वारा जीर्णोद्धार कराए गए महावीर मंदिर में प्रथम बार ऋषभदेव भगवान की मूर्ति की स्थापना की गई थी। उदारमतिसुन्दरं प्रथमतीर्थकृन्मन्दिरम् पंक्ति भी इस तथ्य की पुष्टि करती है। यदि विदग्धराज द्वारा जीर्णोद्धार कराया हुआ मंदिर बहुत सुदर और उत्तम होता तो फिर श्लोक सं. 36 में जिनगहेsतिजीणे पंक्ति में मंदिर को जीर्णशीर्ण क्यों बताया गया है ? इन 80 वर्षों में न तो कोई हमला हस्तिकुण्डो पर हुआ और न कोई दूसरी आफत आई / अतः ये परस्पर विरोधी पंक्तियाँ यह
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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