SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नैषधीयचरिते उदीत उत् +/ई + क्त ( कर्तरि ) / स्तम्भः, स्तम्भ + अच ( भावे ) / शशाक शक + लिट शक के योग में धर्तुम् को तुमुन् / अनुवाद-यद्यपि दमयन्ती ने नल का ( वास्तविक ) स्पर्श कर लिया था. किन्तु उनके साक्षात् न दीखने के कारण वह उसे भ्रम मान बैठी। वे राजा नल उसे ( वास्तविक रूप में ) देखते हुए भी शरीर के जड़ हो जाने, हक्का-बक्का रह जाने से सहसा पकड़ न सके / / 52 / / टिप्पणी-यहाँ स्तम्भ को पकड़ न सकने का कारण बता देने से काब्यलिङ्ग है। विद्याधर भाबोदयालंकार भी मानते हैं, किन्तु जैसा कि हम पीछे भी संकेत कर आये हैं भावोदय, भावशमन आदि रसवदलंकारों में भाव शब्द से रस का संचारी भाव विवक्षित है। स्तम्भ संचारी भाव नहीं है, बल्कि सात्विक भाव है, जो अनुभाव का ही एक रूप है। 'नृप', 'नपि' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। स्पर्शातिहर्षादतसत्यमत्या प्रवृत्य मिथ्याप्रतिलब्धबाधौ / पुनर्मिथस्तथ्यमपि स्पृशन्तो न श्रद्दधाते पथि तौ विमुग्धौ // 53 // अन्वयः-स्पर्शा.मत्या प्रवृत्य मिथ्याप्रतिलब्ध-बाधौ पथि तथ्यम् मिथः पुनः स्पृशन्तो अपि विमुग्धौ तौ न श्रघाते। ___टीका-स्पर्शेन परस्परं तात्त्विक-संपर्केण यः अतिहर्षः स्पर्शजनितो महानन्द इत्यर्थः ( तृ० तत्पु० ) अतिशयितो हर्षः इत्यतिहर्ष: (प्रादि तत्पु० ) तेन आदृता मानिता अभ्युपगतेत्यर्थः या सत्यमतिः ( कर्मधा० ) सत्यस्य मतिः बुद्धिः (10 तत्पु० ) तया सत्योऽयं स्पर्शः इति बुद्धय त्यर्थः प्रवृत्य आलिङ्गनादौं पुनः व्यापृत्य किन्तु तात्त्विक-स्पर्शालाभेन मिथ्या मिथ्यात्वेनेत्यर्थः प्रतिलब्धः ज्ञातः निश्चित इत्यर्थः बाधः सत्यत्वमतेः निरोधः ( कर्मधा० ) याभ्यां तथाभ्रती ( ब० वो० ) सन्तो पथि मार्गे तृतीयस्थाने तथ्यम् तात्त्विकत्वेन मिथः परस्परम् पुनः स्पृशन्तौ स्पर्शविषयीकुर्वन्तो अपि विमुग्धौ भ्रान्तौ तौ नलदमयन्त्यौ न श्रद्दधाते न श्रद्धां विश्वासमित्यर्थः कुरुते अर्थात् तात्त्विके स्पर्शे जायमानेऽपि तं तात्त्विकत्वेन न अपितु भ्रमात्मकत्वेनैव गृह्णीते स्मेति भावः / / 53 / / व्याकरण-आवृत आ + V + क्त ( कर्मणि ) बाधः बाध् + घन ( भावे ) / तथ्य तथा + यत् / श्रद्दधाते श्रत् + Vधा + लिट् श्रदन्तरोरुप संख्यानम्' इससे 'श्रत्' को उपसर्गत्व हो रखा है। .
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy