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________________ 546 नैषधीयचरिते वेगात् सृजन्त्याः प्रवर्तयन्त्याः तस्याः दमयन्त्याः ( यतः यस्मात् ) चत्वारः चतु:संख्यकाः प्रहराः यामा चतुःप्रहरात्मिकेत्यर्थः अपि सा क्षपा रात्रिः स्मरस्य कामस्य अतिभिः पीडाभिः वियोगवेदनाभिरित्यर्थः दुः- दुःखेन क्षयितुं शक्या दुःसहेत्यर्थः अभत जाता, तत् तस्मात् तस्याम् दमयन्त्याम् कृपया अनुग्रहेण विधिना ब्रह्मणा अखिला सर्वा रात्रिः त्रयो यामा: प्रहराः यस्यां तथाभूता (व० वी) कृता विहिता। दमयन्त्याः कृते स्वयंवरात् पूर्वतनी चतुर्यामा एका रात्रिरप्यतिवाहयितुम् अतिदुःशकेति दृष्ट्वा ब्रह्मणः सा रात्रिः तस्याः त्वरितमेव व्यतीयादिति कृत्वा दयाद्रेण सता सर्वापि रात्रिः त्रियामा कृतेवेति भावः // 158 // व्याकरण-श्वः यास्कानुसार 'आशंसनीयः कालः'। प्रियम् प्रीणातीति प्री + क, ह्रस्व / उद्धरा घुरमुद्गतेति (प्रादि स०)। धी: ध्यायतेऽनयेति/ध्य + विप् ( करणे ) नम्र, उन्नम्र नम् + र। वेतस्वतीः वेतस् + इमतुप, म को व। अनुवाद-क्योंकि दूसरे दिन प्रिय को प्राप्त करने हेतु मन में उत्कण्ठित हुई तथा कपोल-स्थलों पर ऊँचे-नीचे उठे रोमाञ्चों के रूप में बेतों वाली अश्रधाराओं को वेग के साथ वहाती हुई उस ( दमयन्ती ) के लिए चार प्रहरों वाली वह ( एक ) रात भी काम-वेदनाओं के कारण काटनी कठिन हो रही थी, इसलिए ब्रह्मा ने ( मानो ) उसके ऊपर कृपा करके सभी रातें त्रियामा ( तीन प्रहरों वाली ) बना दी // 1580 टिप्पणो-जैसे कि विद्याधर और मल्लिनाथ कह रहे हैं यहाँ उत्प्रेक्षा है, लेकिन वाचक शब्द कोई नहीं है, अतः वह प्रतीयमाना ही है। उत्प्रेक्षा में कवि की कल्पना यह है कि मानो उस वीच की चतुर्यामा रात्रि को ब्रह्मा ने दमयन्ती के खातिर त्रियामा बनाते हुए सभी रात्रियों को त्रियामा बना दिया। वैसे ज्योतिष के अनुसार दिनमान आठ प्रहरों का होता है जिसमें चार प्रहर दिन के होते हैं और चार प्रहर रात्रि के किन्तु रात्रि के एक प्रहर अर्थात् आगे-- पीछे के आधे आधे प्रहर (डेड-डेड़ घंटों को ) दिन के भीतर गिन लेते हैं, क्योंकि लोग डेड़ घंटे चढ़ी रात और डेड़ घंटे शेष रह रही रात में जागे काम करते रहते हैं। इस तरह रात्रि को एक प्रहर (तीन घण्टे ) निकल जाने से रात्रि त्रियामा कहलाती है। विद्याधर अतिशयोक्ति भी कह रहे हैं सम्भवतः
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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