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________________ षष्टः सर्गः टीका-प्रस्वाः मातुः ( ‘जनयिंत्री प्रसूर्माता' इत्यमरः ) प्रसादात् अनुग्रहात् (10 तत्पु० ) अधिगता प्राप्ता प्रसन्नभूतायाः मातुः सकाशात् प्राप्तेत्यर्थः प्रसूनानाम् पुष्पाणाम् माला हारः उद्भ्रमेण भ्रान्त्या मोहेनेति यावत् यीक्षितस्य दृष्टस्य अपि नलस्य कण्ठाय गलाय तया दमयन्त्या क्षिप्ता प्रक्षिप्ता उपकण्ठे सभीपे ( 'उपकण्ठान्तिकाभ्यर्ण०' इत्यमरः ) स्थित वर्तमानम् सत्यम् वास्तविकम् एन तम् नलम् आलम्बत आश्रयत् सत्यनलकण्ठे पपातेति भावः // 49 // ___व्याकरण -- प्रसूः प्रसूते इति प्र + /सू + क्विप ( कर्तरि ) / प्रसूनम् प्र + /सू+ क्तः त को न / उद्ध्मः उत् + भ्रम् + घञ् / अनुवाद-माता की कृपा से प्राप्त पुष्पमाला उस ( दमयन्ती ) द्वारा यद्यपि भ्रम में देखे गये कल्पित नल के गले में डाली गई थी, ( तथापि ) वह समीप में ही खड़े हुए असली नल को जा पड़ी // 49 // टिप्पणी-भ्रमात्मक नल के गले में फेंकी हुई माला असली नल के हो गले में जो जा पड़ी-यह संयोग की बात समझिए जो भविष्य की ओर कवि का यह संकेत कर रही है कि यद्यपि नल दूत का पूरा-पूरा धर्म निभाते हुए देवताओं का पक्ष समर्थन करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखेंगे, साथ ही देवताओं को दूतियाँ भी अपना-अपना पूरा जोर लगाएंगी, तथापि वे सफल नहीं हो सकेंगे और अन्ततोगत्वा दमयन्ती की वर माला नल के ही गले में पड़ेगी और हुआ भी ऐसा ही। 'प्रस्' 'प्रसू' में यमक, 'कण्ठा' 'कण्ठे' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। स्रग्वासनादष्टजनप्रसादः सत्येयमित्यद्भुतमाप भूपः / क्षिप्तामदृश्यत्वमितां च मालामालोक्य तां विस्मयते स्म बाला // 50 // अन्वयः-~-भूपः वासना-दृष्ट-जन-प्रसादः इयम् सत्या इति अद्भुतम् आप, बाला च क्षिप्ताम् अदृश्यत्त्रम् इताम् ताम् आलोक्य विस्मयते स्म / / तत्पु० ) यो जनः. दमयन्तीरूपः ( कर्मधा० ) तस्य प्रसादः अनुग्रह-रूपा (10 तत्पु० ) इयम् माला सत्या वास्तवी, न तु काल्पनिकी इति हेतोः अद्भुतम् आश्चर्यम् आप प्राप्तवान् दमयन्त्याः काल्पनिकत्वेऽपि मालाया वास्तवत्वात् आश्चर्य स्वाभाविकमेव, बाला तरुणी दमयन्ती च क्षिप्ताम् काल्पनिकनलकण्ठोपरि
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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