SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 528
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवमः सर्गः 525 उन्होंने “अयि प्रिये पुरस्त्वयालोकि नमन्नयं न कि तिरश्चलल्लोचनलोलया नलः" ( 103 ) / कहकर अपने को प्रकट कर दिया कि मैं नल ही हूँ। दमयन्ती यही बात समझ रही थी लेकिन यह उसकी भ्रान्ति थी, क्योंकि नल ने जो अपने को प्रकट किया वह अपनी उन्मादावस्था में प्रकट किया, होश में नहीं किया। अपनी उन्माद-भरी चेष्टाओं से वे इसे सिद्ध कर गए थे। इस तरह उनका आत्म प्रकाशन 'मोहमहोमिनिमितं प्रकाशनम् (127 ) था / दमयन्ती का भ्रम मिट गया और वह यह जानकर कि नल मेरे प्रेम में पागल बने रहे और अपना नाम तक बता गए बड़ी प्रसन्न हुई / यहाँ 'स्वोभ्रम-विभ्रम' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 14 // विदर्भराजप्रभवा ततः परं त्रपासखी वक्तुमल न सा नलम् / पुरस्तमूचेऽभिमुखं यदत्रपा ममज्ज तेनैव महाह्रदे ह्रियः / / 14 // अन्वयः-ततः परम् सा विदर्भराजप्रभवा त्रपा-सखी सती नलम् वक्तम् अलम् न ( अभूत् ) / पुरः अत्रपा ( सती) अभिमुखम् यत् तम् ऊचे, तेन एव ह्रियः महाहदे ममज्ज / टीका-ततः तस्मात् नलनिश्चयात् परम् अनन्तरम् सा विदर्भाणां राजा विदर्भराजः ( 10 तत्पु० ) भीमः प्रभवः उत्पत्तिस्थानं ( कर्मधा० ) यस्याः तथाभूता ब० वी० ) वैदर्भी पाया: लज्जायाः सखी लज्जावती सतीत्यर्थः नलम् वक्तुम् अलम् समर्था न अभूदिति शेषः / पुरः पूर्वम् 'अयं नलः' इति निश्चयाभावकाले इत्यर्थः न पा लज्जा यस्याः तथाभूता ( ना ब वी० ) अभिमुखम् मुखम् अभिगतमिति ( अव्ययी० ) समक्षं यथा स्यात्तथा यत तम् नलम् ऊचे कथितवती तेन एव हेतुना ह्रियः लज्जायाः महान् विशालः ह्रदः सरोवरः ( कर्मधा० ) तस्मिन् ममज्ज निमग्नाऽभवत्, अत्यधिकलज्जिताऽभवदिति भावः // 141 // व्याकरण-प्रभवः प्रभवत्यस्मादिति प्र+भू + अप् / त्रपा/वप् + अ + टाप / ह्रिया हो + क्विप् ( भावे ) / हवं यास्कानुसार ह्रादने इति/ह्राद् + अच ह्रस्व निपातित / __ अनुवाद-तत्पश्चात् वह विदर्भराजपुत्री लज्जित होती हुई बोल न सकी। इससे पहले लज्जारहित हो उन्हें जो कुछ बोल पड़ी थी उससे ही वह लज्जा के सरोवर में डूबी जा रही थी // 141 / /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy