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________________ 490 नैषधीयचरिते अनुवाद-"तुम मुझ पर यदि थोड़ा-सा भी मान करती हो, तो मैं नम्र हो तुम्हारे प्रति महामान ( महाकोप, महासम्मान ) अपना लेता हूँ। यदि तुम ( कोपवश ) मुख कुछ नीचे किये हो, तो मै ( आदरवश ) तुम्हारे पैरों तक नीचे हो जाता हूँ" || 108 / टिप्पणी-अभिप्राय यह है कि बहुत मान से स्वल्प मान का और बहुत नम्रता से स्वल्प नम्रता का निराकरण हो जाता है। यहाँ भी कवि पूर्वोक्त को ही दोहरा रहा है। वास्तव में उन्मादावस्था का मनोविज्ञान ही कुछ ऐसा है कि उन्मत्त व्यक्ति किसी बात को वार-बार दोहराता ही जाता है, इसलिए इसमें कवि की पुनरुक्ति न समझें / विद्याधर ने यहाँ विरोधालंकार कहा है, जो ठीक ही है। मान साहित्य में कोप को कहते हैं - 'स्त्रीणामीप्कृतः कोपो मानोऽन्यासङ्गिनि प्रिये।' दमयन्ती यदि मान(कोप) किये हुए है तो इसका निराकरण करने के लिए 'बहुमान' ( अतिकोप ) करना विरुद्ध बात है / इस विरोध का परिहार 'बहुमान' का बड़ा सम्मान अर्थ करके हो जाता है। इसी तरह कोप में मुंह नीचे अर्थात् फेरे हुए का जवाब और अधिक मुंह फेर देना होना नहीं है। नम्न का विनीत अर्थ करके विरोध-परिहार हो जाता है / 'मानं' मना' में छेक 'मानमानं' में यमक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / / 108 // प्रभुत्वभूम्नानुगृहाण वा न वा प्रणाममात्राधिगमेऽपि कः श्रमः ? / क्व याचतां कल्पलतासि मां प्रति क्व दृष्टिदाने तव बद्धमुष्टिता // 109 // ___ अन्वयः-(हे भैमि ! ) प्रभुत्व-भूम्ना (माम् ) अनुगृहाण वा न (अनुगृहाण) वा ! प्रणाम गमे अपि कः श्रमः ? ( त्वम् ) याचताम् कल्पलता असि ( इति ) क्व; माम् प्रति दृष्टिदाने ( अपि ) तव बद्ध-मुष्टिता क्व / टीका- हे भैमि ! ) प्रभुत्वस्य मां प्रति स्वामित्वस्य आधिपत्यस्येति यावत् भूम्ना बाहुल्येन माम् अनुगृहाण मय्यनुग्रहं कुरु वा अथवा न अनुगृहाण वा। पूर्णाधिपत्यकारणात् प्रभुः सेवकस्योपरि अनुग्रहं कुर्यात् न वा कुर्यादिति प्रभोः इच्छाधीनं भवतीत्यर्थः / तस्मात् कुपिता त्वम् मयि अनुग्रहं न करोषि चेत्, न कुरु, परन्तु मम प्रणामः प्रणमनम् एवेति प्रणाममात्रम् तस्य अधिगमे स्वीकारे (10 तत्पु० ) अपि तव कः श्रमः आयास: कष्टमित्यर्थः ? न कोऽपीति काकुः / त्वम् याचताम् याचनां कुर्वताम् अभ्यर्थिनामिति यावत् कल्पलता सकलमनः
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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