SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 484 नैषधीयचरिते अनुवाद-"ओ प्रिये ! किसके लिए विलाप कर रही हो? हाय ! (किसके लिए ) मुख आँसुओं से लीप रही हो? तिरछे पड़ रहे नयन-विलासकटाक्ष-से सामने सिर झुकाये हुए यह नल तुमने नहीं देखा है ? टिप्पणी-हम पीछे देख आए है कि सती दमयन्ती देवदूत ( नल ) को पर-पुरुष समझ कर सीधा न देखती हुई टेढ़ी नजर करक देखती थी और अब उसके आगे रो भी पड़ी है। इधर देखो तो उन्मादावस्था में नल उसे प्रणयकोप किये टेढी दृष्टि से देखती और रोती हुई समझ रहे हैं तथा उसके आगे सिर झुकाकर क्षमा मांग रहे हैं / विद्याधर यहां हेतु अलंकार कह रहे हैं / 'विलप्यते' 'विलिप्यते' में छेक, अन्यत्र वृत्यनुप्रास है // 103 // चकास्ति बिन्दुच्युतकातिचातुरी घनानुबिन्दुस्र तिकैतवात्तव / मसारताराक्षि! ससारमात्मना तनोषि संसारमसंशयं यतः // 104 // अन्वयः-हे मसार-ताराक्षि ! धना".... कैतवात् तव बिन्दु..'चातुरी चकास्ति यतः ( त्वम् ) असंशयम् संसारम् आत्मना ससारम् तनोषि / टीका-मसारः इन्द्रनीलमणिः तद्वत् नीले इत्यर्थः ( उपमान तत्पु० ) तारे कनीनिकाद्वयम् ययोः तथाभूते ( ब० बी० ) अक्षिणी नयने ( कर्मधा० ) यस्याः तत्सम्बुद्धी (ब० वी० ) हे मसारताराक्षि / घनाः निबिडाः ये अश्र-बिन्दवः ( कर्मधा० ) अधूणाम् अस्रस्य बिन्दवः पृषन्ति तेषां या न तिः स्रवणम् प्रवाह इति यावत् तस्याः कैतवात् छलात् ( सर्वत्र 10 तत्पु० ) बिन्दोः अनुस्वारस्य च्युतम् एव च्युतकम् एतदाख्यः शब्दालङ्कारविशेषः तस्मिन् अतिचातुरी अतिशयिता नैपुणी ( स० तत्पु० ) अतिशयिता चातुरी अतिचातुरी ( प्रादि स० ) चकास्ति शोभते, विन्दुच्युतालङ्कारप्रयोगे त्वं निपुणासीत्यर्थ! अथ च बन्दूनाम् पृषताम् च्युतके प्रवाहे ते अतिचातुरी चकास्ति त्वम् घनाश्रुबिन्दुप्रवाहच्छलेन मिथ्या रोदने चतुरासीत्यर्थः यतः यस्मात् कारणात् त्वम् असंशयम् न संशयो यस्मिन् कर्मणि यथा स्यात् तथा ( ब० वी० ) निश्चितम् संसारम् जगत अथ च 'संसार' शब्दम् आत्मना स्वोपस्थित्या अथ च स्व-सामर्थेन ससारम् सारेण सहितम् श्रेष्ठवस्तु सहितमिति यावत् (ब० वी०) अथ च अनुस्वार-रहितं तनोषि करोषि / अलीक-रोदने अश्रुबिन्दून् प्रवाहयन्ती अपि त्वम् शोभसे, मम कृते च संसारं
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy