________________ 444 नैषधीयचरिते टीका-बङ्ग ! सम्बुद्धौ अव्ययम् हे देवदूत ! मम मे पाणीकरणे पाणिग्रहणसंस्कारे एव अग्निः वह्निः साक्षी साक्षिभूतः ( कर्मधा० ) यस्मिन् तथाभूतम् (ब० वी० ) संगतम् मैत्रीप्रसङ्गेन देवदूतकार्यसम्बन्धे आगमनेनेत्यर्थः सम्पा'दितम् कृतम् ( तृ० तत्पु० ) स्यादिति शेषः मम विवाहाग्नि-समीपे प्रसङ्गवशात् 'प्रियतमेन सह तव मैत्री भविष्यतीत्यर्थः / अद्यात्र तवावस्थानेनायमप्यलभ्यलाभ इति भावः / हा! कष्टम् / सह समम् अधीतिः अध्ययनम् धारयतीति तथोक्तस्य ( उपपद तत्पु० ) सहाध्ययनं कृतवतः लक्षणया कुल-रूप-शीलादिना सदृशस्येत्यर्थः तव आर्यपुत्रस्य मम प्रियतमस्य नलस्येदमित्यार्यपुत्रीयम् आर्यपुत्रसम्बन्धीत्यर्थः अजयम् अक्षयम् चिरकालस्थायीति यावत् संगतम् अजितम् संपादयितुम् स्पृहा इच्छा तव कथं न ? त्वया मत्प्रियतमेन नलेन सह चिरस्थायि मैत्रं संपादनीयमिति भावः // 68 // व्याकरण-पाणौकरणे 'नित्यं हस्ते पाणावुपयमने' ( 1 / 4 / 77 ) से 'पाणी' निपात के गतिसंज्ञक होने से समास / साक्षी साक्षाद् द्रष्ठेति साक्षाद् द्रष्टरि संज्ञायाम्' (5 / 2 / 91 ) / संगतम् सम् + गम् + क्त ( भावे ) / अधीतिः अघि/ई + क्तिन् (भावे) / धृत् धृ + क्विप ( कर्तरि ) / आर्यपुत्रीयम् आर्यपुत्रस्येदमिति आर्यपुत्र छ छ को ईय। अजयंम् न जीर्यतीति न +/ज+ यत् ( कर्तरि ) यह विशेष्य शब्द है और अक्षय संगम ( मैत्री ) अथ का वाचक होता है। 'अजर्य संगतम्' ( 3 / 1 / 105) जैसे 'मृगैरजर्य जरसोपदिष्टम्' ( सि० को०)। स्पृहाV स्पृह + अच् ( भावे )+टाप् / / अनुवाद--“हे दूत ! मेरे पाणिग्रहण के समय ही प्रसंगवश ( मेरे पति के साथ तुम्हारी ) अग्नि को साक्षी बनाये हुए मित्रता हो जाएगी। खेद है कि सहाध्यायी अर्थात् सौन्दर्यादि में एक जैसे लग रह तुम्हें ( मेरे ) प्रियतम के साथ चिरस्थायी मित्रता गांठने की चाह क्यों नहीं होती ?" // 68 // टिप्पणी-सहाधोतिधृतः-साथ पढ़ने वाला, सतीर्थ / दण्डी ने 'तस्य मुष्णाति सौभाग्यम्, तेन साधं विगृह्णति। तत्पदव्यां पदं धत्ते' आदि जो लाक्षणिक प्रयोग सादृश्यपरक गिनाये हैं उन्हें उपलक्षण समझना चाहिए / इसीलिए नैषधकार सतीर्थ्य, सहाध्यायी को भी सादृश्यपरक मान रहे हैं। आर्यपुत्र-यह नाटकीय भाषा का शब्द है, जिसे पत्नी अपने पति के लिए प्रयोग में लाती है /