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________________ पर: सगः अनुवाद-नल ने यौवन के द्वार (प्रारंभ) पर स्थित अवस्था को अपनाना चाहती हुई, ( अतएव ) चिह्न-रूप में रोमावली की बेंत लिये शैशव सम्बन्धी आदतों को रोकती हुई दमयन्ती का चित्र बनाकर देखा // 38 // टिप्पणी नल ने दमयन्ती की 'वयःसन्धि' का चित्र बनाया। यौवनारम्भ के कारण शरीर पर अब रोमावली उग आई थी, जिस पर कवि वेत्रदण्ड का आरोप कर रहा है। द्वार पर खड़ी द्वारपालिका हाथ में बेंत पकड़े रहती है और ऐरे-गैरे आने वालों को रोक देती है। दममन्ती भी यौवन-द्वार पर खड़ी हुई है और रोमावली के रूप में बेंत पकड़े अपनी शैशवोचित आचरणों-आदतों को रोकती जाती है। यहाँ यौवनारम्भ पर द्वारत्व, रोमावली पर वेत्रदण्डत्व और स्वयं दमयन्ती पर द्वारपालिकात्व का आरोप होने से साङ्ग रूपक है। शब्दालङ्कार वृत्त्यनुप्रास है / पश्याः पुरन्ध्रोः प्रति सान्द्रचन्द्ररजःकृतक्रीडकुमारचक्रे / चित्राणि चक्रेऽध्वनि चक्रवर्तिचिह्न तदङ् घ्रिप्रतिमासु चक्रम् // 39 // अन्वय-सान्द्र... चक्रे अध्वनि तदध्रिप्रतिमासु चक्रवति-चिह्नम् पश्याः पुरंध्रीः प्रतिमासु चित्राणि चक्रे / टोका-सान्द्रं धनम् यत् चन्द्र रजः ( कर्मधा० ) चन्द्रस्य घनसारस्य कर्पूरस्येति यावत् ( 'अथ कर्पूरमस्त्रियाम् / घनसारश्चन्द्रसंज्ञः' इत्यमरः) रजः धूलिः (10 तत्त्०) तेन कृता विहिता ( तृ० तत्ए० ) क्रीडा खेला ( कर्मधा०) येन तथा भूतम् (ब० बी० ) कुमारचक्रम् ( कर्मधा० ) कुमाराणां बालानां चक्रं समूहः ( 10 तत्पु० ) यस्मिन् तथाभूते / ब० वी० ) अध्वनि मार्गे तस्य नलस्य अज्रयोः चरणयोः प्रतिमासु प्रतिविम्बेष ( उमयत्र 10 तत्पु० ) चक्रवर्तिनः सार्वभौमनृपस्य चिह्न लक्षणं रेखाख्पमित्यर्थः चक्रम् मण्डलं गोलरेखामिति यावत् पश्या: पश्यन्तीः पुरंध्रो: कुटुम्बिनी: प्रति लक्ष्यीकृत्य चित्राणि आश्चर्याणि ('आलेख्याश्चर्ययोश्चित्रम्' इत्यमरः) चक्रे अकरोत् / मार्गे नलपदचिह्नष चक्रवर्तिलक्षणं चक्राकारगोलरेखां विलोक्य कुटुम्बिन्यश्चकिता बभूवुः अत्र कश्चक्रवर्ती नृपो गत इति भावः // 39 ! / व्याकरण-क्रीडा क्रीड् + अ + टाप् / पश्याः पश्यन्तीति / दृश् + श:
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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