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________________ नवमः सर्गः अन्वयः-सूरयः अन्य-जनुभविष्णवे दिवे फलाय तपोऽनले तनूः जुह्वति / सा एव विह्वला ( सती ) बलात् इव त्वाम् करे कर्षति / हे बालिशे ! त्वम् न वलसे / टीका-सूरयः धीमन्तः विद्वांस इति यावत् ( धीमान् सूरिः कृती कृष्टिा, इत्यमरः ) अन्यत् परं तत् जनः जन्म ( कर्मघा० ) तस्मिन् भविष्णवे भाविन्यै ( स० तत्पु० ) दिवे स्वर्गाय ( 'सुरलोको द्यो-दिवी द्व' इत्यमरः ) फलाय स्वर्गरूपफलायेत्यर्थः तपः तपस्या एव अनल: वह्निः तस्मिन् ( कर्मधा० ) तनूः शरीराणि जुह्वति प्रक्षिपन्ति जन्मान्तरे यथा नः स्वर्गलोकप्राप्तिः स्यादिति कृत्वा विद्वांसः तपोरूप-वह्नौ स्वशरीरं त्यजन्ति, घोरतपांसि चरन्तो नाना क्लेशान् सहन्ते इति यावत् सा द्यौः स्वर्गलोकः इत्यर्थः विह्वला व्याकुला, उत्सुका सती अधीरीभूयेत्यर्थः बलात् बलपूर्वकम् इव त्वाम् दमयन्तीम् करे हस्ते धृत्वा कर्षति उपरि कृषति / हे बालिशे ! मूर्खे! ('अज्ञेच वालिशः' इत्यमरः) त्वम् न बलसे न चलसि गन्तुं नेच्छसीत्यर्थः / स्वर्गलोकः उत्सुकः सन् त्वां हस्ते धृत्वा अस्मिन्नेव जन्मनि, बलात् आकर्षति, त्वं च न गच्छसीति धिक् ते मूर्खतामिति भावः // 45 // ___ व्याकरण- जनु : V जन् + उस् ( भावे ) भविष्णवे भवतीति भू+ इष्णुच् / यद्यपि यह प्रयोग वैदिक है, तथापि कवि लोग लोक में भी इसे करते आए हैं। __ अनुवाद-विद्वान् लोग जन्मान्तर में मिलने वाले स्वर्ग-फल हेतु तपरूपी अग्नि में शरीर की आहुति देते हैं / वही स्वर्ग उत्सुक हो हाथ से ( पकड़कर ) बलात्-जैसे नुम्हें खींच रहा हैं, ( किन्तु ) हे मूर्खे! तुम नहीं जा रही हो (कितनी आश्चर्य की बात है ) // 45 / / टिप्पणी-लोग तप करते हैं और मानुष चोला छोड़ देते हैं, तब जाकर उन्हें दूसरे जन्म में स्वर्ग प्राप्ति होती है। तुम्हें देखो तो इसी मानुष चोले में बिना तप के स्वर्ग:प्राप्ति हो रही है-यह कितना ऊँचा भाग्य तुम्हारी बाट जोह रहा है, अतः इन्द्र का वरण करो। स्वर्ग-प्राप्तिका कारण बताने में काव्यलिङ्ग तप पर अनलतारोपण में रूपक और बलादिव में कल्पना होने से उत्प्रेक्षालंकार है। बलसे वालिशे में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 45 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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