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________________ 401 नैषधीयचरिते दीख रहा है / हाँ, 'स्यया तया' में तुक मिलने से पदान्तगत अन्त्यानुप्रास अवश्य है, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास ही है // 30 // बिभेमि चिन्तामपि मर्तुमीदृशीं चिराय चित्तार्पितनैषधेश्वरा / मृणालतन्तुच्छिदुरा सतीस्थितिलंवादपि त्रुटयति चापलात्किल / / 31 / / - अन्वयः-चिराय चित्तापित-नैषधेश्वरा ( अहम् ) ईदृशी चिन्ताम् अपि कर्तुम् बिभेमि, किल मृणाल-तन्तु-च्छिदुरा सती-स्थितिः लवात् अपि चाफ्लात् त्रुट्यति / ___टोका-चिराय चिरकालात् आरभ्य चित्त मनसि अर्पितः स्थापितः ( स० तत्पु० ) नैषधः निषधदेशसम्बन्धी चासो ईश्वरः प्रभुः ( उभयत्र कर्मधा० ) नल इत्यर्थः यया तथाभता ( ब० वी० ) अहम् ईदृशीम् एवंविधाम् इन्द्रादिवरणविषयिणीमिति यावत् चिन्ताम् विचारम् अपि कर्तुम् विधातुम् बिभेमि त्रस्यामि दूरे तिष्ठतु तावत् शारीरिकसम्बन्धः, नलातिरिके इन्द्रादी मानससम्बन्धमपि कर्तु नाहं शक्नोमि इत्यर्थः किल यतः मृणालस्य विसस्य तन्तुः सूत्रम् (10 तत्पु० ) तद्वत् छिदुरा भंगुरा ( उपमान तत्पु० ) सत्याः पतिव्रतायाः स्थितिः मर्यादा (10 तत्पु० ) लवात् अल्पात् अपि चापलात् चाञ्चल्यात् त्रुटयति भग्ना भवति / परपुरुषविषये ईषदपि मनसि विचारणे सतीत्वव्रतभङ्गो भवतीति भावः // 31 // व्याकरण-नैषधः निषघानाम् अयमिति निषध + अण् / ईदृशीम् इदम् + दृश् + क्विन् + ङीष् / छिदुरा छिद्यते इति /छिद् + कुरच् ( कर्मकर्तरि ) / कर्तु बिभेमि यद्यपि शक्-धुष आदि (3 / 4 / 64 ) जिन धातुओं के उपपद रहते तुमुन् का विधान है, उनमें भी नहीं आया हुआ है, तथापि कवि ने यहाँ तुमुन् कर ही दिया है। अन्य कवियों ने भी ऐसा कर रखा है जैसे कालिदास "एनां चित्रगतामपि दुष्टुन ददाति दैवम्' ( शकु० ) में दाधातु के साथ तुमुन् किया है लवादपि यद्यपि लव शब्द साधारण रूप से विशेष्य ही रहता है, तथापि कहीं-कहीं विशेषण भी बन जाता है। इसीलिए सरस्वतीकण्ठाभरणकार ने इसे विशेषण बनाकर क्रियाविशेषणरूप में भी प्रयुक्त कर रखा है, जैसे'लवमपि लवंगे न रमते'। ___ अनुवाद-"[ यहाँ से लेकर दमयन्ती की ओर से सखी बोल रही है ] चिरकाल से निषध-नरेश को मन में स्थापित किये हुए मैं ऐसी ( इन्द्रा
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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