SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 344 नैषधीयचरिते प्रिया मनोभूशरदावदाहे देवीस्त्वदर्थेन निमज्जयद्भिः / सुरेषु सारैः क्रियतेऽधुना तैः पादार्पणानुग्रहभूरियं भूः // 88 // अन्वय:-त्वदर्थेन प्रियाः देवीः मनोभूशरदाव-दाहे निमज्जयद्भिः तैः सुरेषु सारैः अधुना इयम् भूः पादार्पणानुग्रहभूः क्रियते / टोका-त्वम् अर्थः प्रयोजनम् तेन ( कर्मधा० ) त्वनिमित्तमित्यर्थः प्रियाः देवीः स्वप्रियपत्नी: शच्यादी: मनोभः कामः तस्य शराः वाणाः (10 तत्पु०) एव दावः वनाग्निः ( कर्मधा० ) तस्य दाहे दहनक्रियायाम् निमज्जाद्धः पातयद्भिः तैः सुरेषु देवेषु सारै। श्रेष्ठभूतैः इन्द्रादिभिः अधुना सम्प्रति इयम् एषा भूः पृथिवी विदर्भदेशः इत्यर्थः पादयोः चरणयोः अर्पणम् दानं निधानमित्यर्थः (10 तत्पु० ) एव अनुग्रहः कृपा ( कर्मधा० ) तस्य भूः स्थानं पात्रमिति यावत् क्रियते विधीयते / स्वप्रियपत्नीः विरहानले प्रक्षिपन्तः इन्द्रादयः विदर्भ देशम् आगमनानुग्रहेण कृतकृत्यीकुर्वन्तीति भावः // 88 // व्याकरण-अर्थ यास्कानुसार अर्थ्यते इति/अर्थ + घन् / मनोभूः इसके लिए पीछे श्लोक ( 4 देखिए ) सुरेषु इसके लिए पीछे सर्ग 5 श्लोक 34 देखिए / अधुना अस्मिन् काले इति इदम् + अधुना ( स्वार्थे ) इदम् का लोप / अनुवाद-"तुम्हारे कारण प्रिय देवियों ( निज पत्नियों ) को काम के बाण-रूपी अग्नि के ताप में झोंकते हुए वे सुरश्रेष्ठ ( इन्द्रादि ) इस समय इस भू ( विदर्भदेश ) को ( निज ) पदार्पण का कृपा-भाजन बना रहे हैं" // 88 // टिप्पणी-तुम्हारे खातिर पत्नियों को विरहाग्नि में जलती छोड़ इन्द्रादि विदर्भदेश के समीप आये हुए हैं। विद्याधर के अनुसार 'अत्रातिशयोक्तिरलंकारः' संभवतः वे 'सुरेषु सारै.' और इन्द्रादि में अभेदाध्यवसाय मान रहे हों किन्तु हमारे विचार से सार शब्द यहाँ विशेषण-रूप है, विशेष्यरूप नहीं। हाँ, भूपर अनुग्रहभूत्वारोप में रूपक बन सकता है। 'दाव' 'देवी' 'सुरे' 'सारै' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। अलंकृतासन्नमहीविभागैरयं जनस्तैरमरैर्भवत्याम् / अवापितो जङ्गमलेखलक्ष्मी निक्षिप्य संदेशमयाक्षराणि // 89 // अन्वयः-अलं...भागैः तैः अमरैः अयम् जनः भवत्याम् सन्देशमयाक्षराणि निक्षिप्य जङ्गमलेखलक्ष्मीम् अवापितः /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy