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________________ षष्ठः सर्गः आकार में तीनों एक हैं। शब्दालंकारों में से 'निप' 'नृप' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। तन्वीमुखं द्रागधिगत्य चन्द्र वियोगिनस्तस्य निमीलिताभ्याम् / द्वयं द्रढोयः कृतमीक्षणाभ्वां तदिन्दुता च स्वसरोजता च // 26 // अन्वयः-तन्वी-मुखम् ( एव ) चन्द्रम् अधिगत्य द्राक्. निमीलिताभ्याम् वियोगिनः तस्य ईक्षणाभ्याम् तदिन्दुता च स्वसरोजता च-द्वयम् द्रढीयः कृतम् / टोका-तव्याः कस्याश्चित् कृशाङ्गयाः मुखम् वदनम् एव चन्द्रम् शशिनम् द्राक् शीघ्र निमीलिताभ्याम् संकुचिताभ्याम् वियोगिनः विरहिणः अधिगत्य प्राप्य तस्य नलस्य ईक्षणाभ्याम् नयनाभ्याम् तस्य तन्वी-मुखस्य इन्दुता चन्द्रत्वम् (10. तत्पु० ) च स्वस्य आत्मनश्च सरोजता इन्दीवरता चेति द्वयम् द्रढीयः अतिशयेन दृढम् कृतम् विहितम् / तन्व्याः मुखमवलोक्य राजा नलः स्वनयने संकोचितवान्, तत्सकाशात् प्रत्यावर्तितवानिति भावः / / 26 // व्याकरण-ईक्षणम् ईक्ष्यतेऽनेनेति ईक्ष + ल्युट ( करणे)। सरोजम सरसि जायते इति सरस् + /जन् + डः द्रढीयः अतिशयेन दृढमिति दृढ + ईयसुन्, ऋ का र / अनुवाद - ( किसी ) कृशांगी के मुखरूपी चन्द्रमा को प्राप्त कर शीघ्र ही बन्द हुई उन ( नल ) की आँखों ने उस ( कृशाङ्गी के मुख ) की चन्द्रता और अपनी सरोजता-दोनों बातें खूब पक्की करलीं // 26 // टिप्पणी-मुख पर चन्द्रत्वारोप होने से रूपक है। मुख के आगे आँखों के बन्द हो जाने से यह अनुमान किया जा रहा है कि कृशांगो का मुख चन्द्र है और नल की आँखें सरोज हैं, क्योंकि चन्द्रमा के ही सामने आने पर सरोज बन्द हो जाया करते हैं, इसलिए अनुमानालंकार है / चतुष्पथे तं विनिमीलिताक्षं चतुर्दिगेताः सुखमग्रहीष्यन् / संघट्टय तस्मिन्भृशभीनिवृत्तास्ता एव तद्वर्त्म न चेददास्यन् // 27 // अन्वयः-विनिमीलिताक्षम् तम् चतुर्विंगेताः ( स्त्रियः ) चतुष्पथे सुखम् अग्रहीष्यन्, चेत् तस्मिन् संघस्य भृशभी-निवृत्ताः ताः एब तद्वत्म न अदास्यन् / टीका-विनिमीलिते पिहिते अक्षिणी नयने ( कर्मधा० ) येन तथाभूतम् ( ब० वी० ) परस्त्रीणां मुखाद्यवलोकन-पापभयात् निमीलित चक्षुषमित्यर्थः तम्
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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