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________________ अष्टमः सर्गः कामदेव सज्जनों के अन्तःकरण को-जो विवेक की सैकड़ों धाराओं से धुला रहता है-मैला नहीं बना सकता है // 54 // टिप्पणी-कामदेव का प्रलोभन होते हुए भी नल धैर्य से, मनोबल से नहीं डिगे और अपने कर्तव्य पर दृढ़ रहे। इन्हें ही धीर पुरुष कहा जाता है। कालिदास ने भी यही कहा है -'विकारहेतौ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः'। यहाँ पूर्वार्धगत विशेष बात का उत्तरार्ध-गत सामान्य बात द्वारा समर्थन होने से अर्थान्तरन्यास है। मल्लिनाथ पूर्वार्धं में परिसंख्या भी लिख रहे हैं, जो हम नहीं समझ पाये / विद्याधर प्रियतमा की वीणा-जैसी बाणी से अपनी प्रशंसा सुनकर भी स्मराज्ञा के अवधीरण में विशेषोक्ति कह रहे हैं। हमारे विचार से काम द्वारा सज्जनों के मन के कलुषित न किये जाने का कारण बताने में काव्यलिङ्ग भी है / 'धीर्य' 'धैर्या' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / हरित्पतीनां सदसः प्रतीहि त्वदीयमेवातिथिमागतं माम् / वहन्तमन्तर्गुरुणादरेण प्राणानिव स्वःप्रभुवाचिकानि // 55 // अन्वयः-( हे दमयन्ति ! त्वम् ) माम् गुरुणा आदरेण स्वःप्रभुवाचिकानि प्राणान् इव अन्तः वहन्तम्, हरित्पतीनाम् सदसः आगतम् त्वदीयम् एव अतिथिम् प्रतीहि / टीका-(हे दमयन्ति ! त्वम् ) गुरुणा महता आदरेण सह अतिप्रयत्नेनेत्यर्थः स्वः स्वर्गस्य प्रभूणाम् स्वामिनाम् इन्द्रादीनां वाचिकानि सन्देश-वचनानि ( नन्देश-वाग वाचिकं स्यात्' इत्यमरः ) प्राणान् जीवितम् इव अन्तः हृदये वहन्तम् धारयन्तम् हरिताम् दिशानाम् ( 'दिशस्तु ककुभः काष्ठा आशाश्च हरितश्च ताः' इत्यमरः ) पतीनाम् स्वामिनाम् इन्द्रादीनाम् (10 तत्पु० ) सदसः सभातः आगतम् आयातम् त्वदीयम तव सम्बन्धिनम् एव अतिथिम प्राघुणिकम् प्रतीहि जानीहि / इन्द्रादि-दिक्पालः त्वाम् प्रत्येव प्रेषितोऽहम् तवैवातिथिरस्मि, नान्यस्येति भावः // 55 // व्याकरण--वाचिकानि वाक +ठक ('वाचो व्याहृतार्थायाम्' 5 / 4 / 35 ) / प्रभुः प्रभवतीति प्र+ भू + छ / प्राणान् - प्र + /अन् + घञ् (भावे) / सदस:सीदन्त्यामिति/सद् + असि ( अधिकरणे ) / त्वदीयम्...युष्मत् + छ, छ को ईय, युष्मत् को त्वदादेश / अतिथिः इ.के लिए पीछे श्लोक 48 देखिये / प्रतीहि प्रति + /इ + लोट् म० पु० /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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