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________________ 283 नैषधीयचरिते टिप्पणो-यहाँ दमयन्ती आगन्तुक पर यह कल्पना कर रही है कि मानो काम ने पूर्व जन्म में महादेवके नेत्राग्निकुंड में अपने शरीर की आहुति दे देने में जो महान् धार्मिक अनुष्ठान किया था, उसी से अजित पुण्य के फल-स्वरूप वह पुनर्जन्म धारण करके आप में अवतीर्ण हुआ हो। महादेव के तृतीय नेत्र की वह्नि में काम के दाह को कवि यहाँ धार्मिक आत्माहुति के रूप में ले रहा है, इसलिए उत्प्रेक्षा है, जिसका वाचक यहाँ 'मन्ये' शब्द है। अक्षि पर हुताशत्व के आरोप में रूपक है। विद्याधर पता नहीं किस तरह अतिशयोक्ति कह गए हैं / ‘चण्डी' ‘चण्डा' और 'मन्दि' 'मिन्द्रि' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। शोभायशोभिजितशैवशैलं करोषि लज्जागुरुमौलिमलम् / दस्रो हठश्रीहरणादुदस्रौ कंदर्पमप्युज्झितरूपदर्पम् // 34 // अन्वयः-( त्वम् ) शोभा-यशोभिः जित-शैव-शैलम् ऐलम् हठश्रीहरणात् लज्जा-गुरु-मौलिम् करोषि; ( शोभा-यशोभिः जितशैवशैलौ ) दस्रो ( हठश्रीहरणात् ) उदस्रौ करोषि, तथा ( शोभायशोभिः जितशवशैलम् ) कंदर्पम् (हठश्रीहरणात् ) उज्झितरूपदर्पम् करोषि / / टीका-त्वम् शोभायाः सौन्दर्य-कान्त्याः यशोभिः कीतिभिः (10 तत्पु० ) जितः पराभूतः अतिशयितः इति यावत् शैव: शिव-सम्बन्धी शैल: पर्वतः कैलाशः इत्यर्थः ( सर्वत्र कर्मधा० ) येन तथाभूतम् (ब० बी० ) ऐलम् इलायाः पुत्रम्, पुरूरवसम्, पुरूरवाः हि इलायाः बुधस्य च पुत्रः आसीत् हठेन बलात् श्रियः शोभायाः ( तृ० तत्पु० ) हरणात् ग्रहणात् (10 तत्पु० ) लज्जया त्रपया गुरुः भारी अवनत इत्यर्थः ( तृ० तत्पु० ) मौलि: शिरः ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतम् (ब० वी० ) लज्जावनतशिरसम् इत्यर्थः करोषि विधत्से;शोभा-यशोभिः जितशैवशैली दस्रौ अश्विनीकुमारौ हठश्रीहरणात् उत उद्गतम् अस्रम् बाष्पः ययोः तथाभूती ( ब० वी० ) करोषि; तथा शोभायशोभिः जितशवशैलम् कन्दर्पम् कामम् हठश्रीहरणात् उज्झितः त्यक्तः रूपस्य सौन्दर्यस्य (10 तत्पु० ) दर्पः अभिमानो येन तथाभूतम् (ब० वी०) करोषि, त्वम् रूपे पुरूरवसम्, आश्विनेयौ, कामदेवञ्चापि अतिशयितवानसीति भावः // 34 // व्याकरण-शेवः शिवस्यायमिति शिव + अण् / शैल: शिलाः एवेति शिला + अण् / ऐलम् इलायाः अपत्यं पुमानिति इला+ अण् / वस्रो यास्काचार्यानुसार 'दर्शनीयौ' पृषोदरादित्वात्साधुः / वर्ष: / दृप् + अच, घञ् वा /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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