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________________ नैषधीयचरिते की। इस तरह निदर्शनालंकार है। 'नेन' 'नेन' में यमक, 'कत' 'केत' 'कृता' में एक से अधिक वार वर्ण-साम्य में अन्यत्र की तरह वृत्त्यनुप्रास ही है। तीर्णः किमोनिधिरेव नैष सुरक्षितेऽभूदिह यत्प्रवेशः। फलं किमेतस्य तु साहसस्य न तावदद्यापि विनिश्चनोमि // 26 // अन्वयः-(हे श्रेष्ठपुरुष ! ) सुरक्षिते इह प्रवेशः अभूत् यत् एष अर्णोनिधि: एव किं न तीर्णः ? तु एतस्य साहसस्य किं फलम्, अद्य अपि तावत् न विनिश्चित नोमि / टीका-( हे श्रेष्ठपुरुष ! ) सु = सुष्ठ रक्षिते गुप्ते नितरां दुष्प्रवेशे इत्यर्थः इह अस्मिन् कन्यान्तःषुरे ते प्रवेशः आगमनम् अभूत् जातः यत् एषः प्रवेशः अर्णोनिधिः समुद्रः एव किन तीर्णः बाहुभ्यां न लंधितः? अपितु तीर्ण इति काकुः तवेह मदन्तःपुरप्रवेशः समुद्रतरणसदृशः इत्यर्थः / तु किन्तु एतस्य अस्य साहसस्य साहसिकचेष्टितस्य असमीक्ष्यकारित्वस्येति यावत् किम् फलम् प्रयोजनम् / अद्यापि इदानीमपि न निश्चिनोमि नावधारयामि / त्वम् किमर्थमअत्रागतोऽसीति कथ्यतामिति भावः // 26 // व्याकरण-अर्णोनिधिः अर्णासि ( जलानि ) निधीयन्तेऽत्रेति अर्णस् + नि + Vधा + किं ( अधिकरणे ) / तीर्णः तृ + क्त, त को न, न को ण, ऋ को इर् / साहसम् सहसा ( बलेन ) निर्वृत्तमिति सहस् + अण् / अद्य इसके लिए पीछे श्लोक 25 देखिए। ___अनुवाद-"(हे नरश्रेष्ठ ! ) इस सुरक्षित स्थान में तुम्हारा जो प्रवेश हुआ है-यह तुमने समुद्र ही नहीं लाँघा है क्या ? किन्तु ( तुम्हारे ) इस साहस का प्रयोजन क्या है--यह मैं अब तक भी निश्चय नहीं कर पा रही हूँ' // 26 // टिप्पणी-यहाँ अन्तःपुर में नल के प्रवेश को समुद्र पार करना बताया गया है, लेकिन अन्तःपुर में प्रवेश करना और बात है और समुद्र पार करना और बात है। दोनों एक कैसे हो सकते हैं ? यह बिलकुल असम्भव बात है, इसलिए पिछले श्लोक की तरह यहाँ भी असम्भवद्-वस्तु सम्बन्ध में बिम्बप्रतिबिम्बभाव है, जिसका मतलब प्रणिधान गम्य सादृश्य होता है अर्थात् अन्तःपुरप्रवेश समुद्रलंघन जैसा कठिन कार्य है / इस प्रकार निदर्शना है, किन्तु यहाँ वह वाक्यगत है। विद्याधर काव्यलिङ्ग भी मान रहे हैं। 'तीर्ण' 'मों' में र और ण का सकृत् साम्य होने से छेक, 'तस्य' 'सस्य' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है।
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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