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________________ 222 नैषधीयचरिते टिप्पणी-यहाँ कवि दमयन्ती पर काम-रूपी मदमत्त हाथी के निवासस्थान का आरोप कर रहा है। काम दमयन्ती में अपने पूरे उद्दीप्त रूप में है। अथवा उसे देख काम पूरा उद्दीप्त हो उठता है। हाथी भी जब मदमत्त हो उठता है तो अपने आलान-बन्धन स्तम्भ को उखाड़ फेंक देता है। स्तम्भ उखड़ जाने पर खड्ड बन जाती है, उसकी तरह यहाँ नाभि है ही, शृङ्खला टूटकर खिसक पड़ती है वैसी जैसी रोमावली है, जो त्रिवलियों के मध्य चली जाने से टूटी-सी पड़ी है; हाथी के सोने के लिए ऊंचा स्थान बना रहता है सो वैसाजैसा यहाँ कुच है ही। इस तरह यहाँ उपमोत्थापित रूपकालंकार है / 'स्खलच्छृङ्खल' में छेक, 'चास्तु' 'वास्तु' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। रोमावलिभ्रकुसुमैः स्वमौर्वीचापेषुभिर्मध्यललाटमूनि / व्यस्तैरपि स्थास्नुभिरेतदीयै त्रः स चित्रं रतिजानिवीरः // 86 // अन्वयः--स रतिजानिवीरः मध्य-ललाटमूनि व्यस्तैः स्थास्नुभिः अपि एतदीयः रोमावलिभ्रूकुसुमैः स्वमौर्वीचापेषुभिः जैत्रः ( इति ) चित्रम् / टोका--स रतिः एतदाख्या स्त्री जाया पत्नी ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतः (ब० वी० ) काम एव वीरः शूरः ( कर्मधा० ) मध्यं कटिश्च ललाटम् भालं च मूर्धा शिरश्चैतेषां समाहारः इति ०मधं ( समाहार द्वन्द्व ) नपुंसकेकवचनम् तस्मिन् व्यस्तैः परस्परं पृथग्भूतैः स्थाम्नुभिः स्थितैः अपि एतदीयः इदमीय: दमयन्त्याः इत्यर्थः रोमावलिश्च ध्रुवौ च कुसुमानि पुष्पाणि चेति तैः ( द्वन्द्वः) स्वा निजा क्रमशः मौर्वी ज्या च चापो धनुश्च इषवः बाणाश्चेति तै: जैत्र: जेता जगतः इति शेषः इति चित्रम् आश्चर्यम् / कामदेवरूपो वीरः दमयन्त्याः कटौ, ललाटे मूनि च पृथक-पृथक् स्थितः क्रमशः रोमावल्या भ्रूभ्याम् कुसुमैः एव क्रमशः 'स्वकीयया मौा चापेन इषुभिश्च जगत् जयतीति चित्रम् / अन्यो धनुर्धारी मौर्वीम् चापं बाणं च सम्मिलितं कृत्वैव शत्रनु जयति, कामस्तु पृथक पृथक् स्थितेन एकैकेनैव मौर्यादिना जयतीति महदाश्चर्यमिति भावः // 86 // व्याकरण-रतिजानि: ब० वी० में जाया शब्द के य को निङ् हो जाता है( 'जायाया निङ' 6 / 1166 ) वीरः वीरयतीति वीर् (विक्रान्ती ) + अच् ( कर्तरि ) व्यस्त वि + अस् + क्त / स्थास्नुभिः तिष्ठतीति स्था + उस्नु
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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