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________________ सप्तमः सर्गः 215 एक बिल्व नहीं बल्कि सबके सब बिल्व भी मिलकर इन दो कुचों के सौन्दर्य की कौड़ी मात्र भी बराबरी नहीं कर पाएंगे। कवि का बिल्व शब्द यहाँ जाति-परक प्रयुक्त हुआ समझिए / भाव यह कि ये कुच बिल्व फलों से कई गुना सुन्दर हैं / कवि ने अपनी श्लिष्ट भाषा में यहाँ दूसरा अर्थ भी प्रतिपादित कर रखा है। दोनों अर्थों के वाच्य अथवा प्रकृत होने से श्लेषालंकार है। व्यतिरेक स्पष्ट ही है। विद्याधर श्रीफल के चेतनीकरण में समासोक्ति भी कह रहे हैं। 'राम' 'जान' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / स्तनावटे चन्दनपङ्किलेऽस्या जातस्य यावद्युवमानसानाम् / हारावलोरत्नमयूखधाराकाराः स्फूरन्ति स्खलनस्य रेखाः // 80 // अन्वयः- चन्दन-पङ्किले अस्याः स्तनावटे जातस्य यावद्-युव-मानसानाम् स्खलनस्य हारा'काराः रेखाः स्फुरन्ति / टीका-चन्दनेन मलयजेन पङ्किले पङ्कयुक्ते ( तृ० तत्पु० ) चन्दनस्यात्वात् पङ्कपूर्णे इत्यर्थः अस्याः दमयन्त्याः स्तनयोः कुचयोः अवटे गर्ते ( 'गविटी भुवि श्वभ्रे' इत्यमरः ) कुचद्वयमध्यान्तराले इत्यर्थ: जातस्य संभूतस्य यावन्तो युवानस्तावतामिति यावद्-युवम् ( अव्ययी० ) अथवा यावन्तो युवानः (कर्मधा०) तावताम् मानसानाम् मनसाम् स्खलनस्य पतनस्य हारस्य मौक्तिकमालायाः या आवली पंक्तिः (10 तत्पु० ) तस्यां यानि रत्नानि रक्तवर्णानि माणिक्यानि ( स० तत्पु०) तेषां मयूखानाम् किरणानाम् धारा परम्परा ( उभयत्र 10 तत्पु० ) एव आकार: स्वरूपम् ( कर्मधा० ) यासां तथाभूताः (ब० वी० ) रेखाः स्फुरन्ति भासन्ते / दमयन्त्याः कुचयोर्मध्ये चन्दनलेप आसीत् / तत्र मौक्तिकानां रत्नानां च श्वेत-लोहित किरणावली पतन्तो एवं भासते स्म यथा तत्र संवलितानां लोकमानसानां स्खलनचिह्नानि रेखारूपेण पतितानि स्युरिति भावः // 80 // व्याकरण-पङ्किले पङ्कोऽस्यास्तौति पङ्क + इलच् ( मतुबर्थ) / मानसानाम् मनः एवेति मनस् + अण् ( स्वार्थे ) / स्खलनस्य /स्खल + ल्युट् ( भावे ) / अनुवाद-चन्दन-कर्दम से गीले बने इस ( दमयन्ती ) के कुचों के मध्यवर्ती गर्त में सभी युवाओं के मनों के फिसलपडने की रेखायें मोतियों के हार में पिरोये रत्नों की किरणावली के रूप में चमक रही है // 80 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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