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________________ 204 नैषधीयचरिते * सः पल्लव: भूयः पुनः अपि अधरेण अधरोष्ठेन साम्यस्य साधर्म्यस्य ( त० तत्पु० ) अहमधरसमोऽस्मीति गर्वम् अभिमानम् (10 तत्पु० ) कुर्वन् विदधानः नामेति उपहासे, कोमलामन्त्रणे वा कथम् केन प्रकारेण प्रवाल: प्रवालंशब्दवाच्यः अथ च वबयारभेदात् प्रकृष्ठो महान् बालः मूर्खः ( कर्मधा० ) न अस्तु भवतु अपि तु अस्त्वेवेति काकुः / पल्लवेन दममन्त्याः करेण सह पस्पधिषायां निजं मूर्खत्वं दर्शितमेव यतः करः तदपेक्षया महान् उत्कुष्टः / पुनः स एव पल्लवो यदि करापेक्षयाऽपि उत्कृष्टतरेण दमयन्त्यधरेण सह साम्यस्याभिमानं कुरुते, तत् तु तस्य प्रबालत्वम् प्रकृष्टम् मूर्खत्वं कथं न स्यादिति भावः // 71 // व्याकरण-स्पर्धनम् / स्पर्ध + ल्युट ( भावे ) / गर्धन ल्यु ( कर्तरि ) अथवा गर्धनम् ल्युट ( भावे ) / ऋद्धिः /ऋध् + क्तिन् ( भावे ) / आपत् आप् + लुङ् / साम्यम् समस्य भावः इति सम + व्यञ् / अनुवाद-जो पल्लव ( पत्ता ) इस ( दमयन्ती ) के हाथ के साथ स्पर्धा करने का अत्यधिक इच्छुक होता हुआ बालत्व वचपन ( नयापन ); मूर्खता को प्राप्त हो बैठा, वही फिर अधर के साथ बराबरी करने का गर्व करता हुआ भला क्यों न प्रवाल ( कोमल पत्ता, अधिक मूर्ख ) बने ? // 71 // टिप्पणी-यहाँ कवि ने कर-वर्णन में बड़ी भारी शब्द चातुरी भर रखी है। इसमें पल्लव, बाल और प्रदाल शब्द विशेष महत्त्व-पूर्ण हैं। पल्लव पत्ते को कहते हैं। उसने कोमलता और रक्तिमा में यदि हाथ की समता चाही तो उसे बाल ( पल्लव ) बनना पड़ा। बाल अभी-अभी निकले ताजे को कहते हैं। ताजा-ताजा निकला पल्लव कोमल और लाल हुआ करता है। वह बाल हो गया, लेकिन फिर भी हाथ की बराबरी न कर पाया, अतः सचमुच बाल = मूर्ख ही साबित हुआ। हाथ के साथ साम्य की इच्छा में मुर्ख होने पर भी वह कोई सबक न सीख सका, उल्टा हाथ से भी उत्कृष्ट अघर के साम्य की डींग भरने लग गया, तो और भी प्रबाल = अधिक मूर्ख बना / जब उत्कृष्ट हाथ से ही बराबरी न हो सकी, तो हाथ से भी अधिक उत्कृष्ट अधर की बराबरी का सपना देखना और अधिक मूर्खता नहीं तो क्या है। भाव यह है कि दमयन्ती के हाथ बाल अर्थात् नवपल्लव से भी अधिक लाल और कोमल हैं। यहां वर्णन यद्यपि हाथों का चल रहा है, तथापि कवि ने उसके साथ-साथ अधर का भी
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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