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________________ 196 नैषधीयचरिते तदवतारस्य श्रीकृष्णस्येत्यर्थः तातस्य पितुः आत्मा स्वरूपम् एव जातः उत्पन्न: स्मरः काम: चत्वारः दोषः वाहवो यस्य तथाभूतः (ब० बी० ) उचितः युक्त एव / 'आत्मा वै पुत्रनामासि' इति श्रुतिप्रमाणात् चतुर्भुजस्य कृष्णस्य आत्मरूप: पुत्रः कामोऽपि चतुर्भुजो भवतीति सर्वथा समुचितमेवेति भावः / अस्याः दमयन्त्याः भ्रुवो: 5 रूपयोः तस्य कामस्य चापयोः धनुषोः (10 तत्पु० ) चिपिटे विस्तृते कौँ लते इव ( उपमित तत्पु० ) वंशस्य वेणोः या त्वक त्वचा तस्याः अंशो भागो ( उभयत्र 10 तत्पु० ) वंशत्वगात्मके इत्यर्थः ज्ये मोव्यों किम् ? चतुर्भुजस्य कामस्य धनुद'येन भाव्यम्, तच्च दमयन्त्याः भ्र द्वयं जातम् कर्णद्वयञ्च वंशत्वगरूपम् धनुाम् अवतारितत्वात् धनुषोः प्रान्तभागयोः एकत्रितं ज्याद्वयमस्तीति भावः // 65 // व्याकरण-सरल है। अनुवाद:-चतुर्भुज पिता (विष्णु = कृष्ण) की आत्मा-रूप ही उत्पन्न हुआ कामदेव चतुर्भुज ठीक है। इस ( दमयन्ती ) के भ्र-रूप उस ( कामदेव) के दो धनुषों की विस्तृत कर्णलतायें बाँस की त्वचा के अंश से बनी दो डोरियाँ है क्या? // 65 // ___ टिप्पणी-चतुर्भुज काम के लिए दो धनुष चाहिए। वे दमयन्ती की दो भौहें हो गई। उन पर इस समय डोरियाँ चढ़ी हुई नहीं हैं। वे धनुष के कोनों में इकट्ठी हो रखी हैं। वे इकट्ठी हुई धनुष की डोरियाँ हैं दमयन्ती के दो कान जो भौंहों के पास हैं / डोरी बाँस की मजबूत त्वचा से बनाई जाती थी। हमने नारायण के अनुसार 'चिपिटे' को विशेषण शब्द मानकर ‘कर्णलते' से जोड़ा है। लेकिन ज्ये' से जोड़ने में स्वारस्य ठीक बैठेगा, क्योंकि धनुष से उतारी हुई डोरी धनुष के कोने में चिपटी-चौड़ी इकट्ठी हो जाया करती है। नरहरि "चिपिटौ' पाठ देकर इस प्रकार व्याख्या करते हैं-'कामचापयोभ्रुवोः कर्णलते ज्ये। चिण्टिौ कर्णान्तग्रन्थी वंशत्वगंशी कि प्रत्यञ्चान्त भागः किम् ?' / चाण्डू पण्डित भी यही पाठ देकर उसे विशेष्यात्मक शब्द मानते हैं और अर्थ यह करते हैं 'चिपिटौत्वलिकापृथुलभागी' / विद्याधर 'चिपटौ' पाठ देकर अस्या भ्रुवी तचापयोश्चिपिटौ दण्डभागी' अर्थ कह रहे हैं / वास्तव में यह शब्द यहाँ संदिग्ध ही समझिए / कवि यहाँ काम में चतुर्भुजत्व की, दमयन्ती की भौहों पर काम
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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