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________________ सप्तमः सर्गः टिप्पणी -अब कवि चार श्लोकों में दमयन्ती की वाणी का वर्णन करता है / ब्रह्मा ने कोमलता निर्माण की निपुणता दमयन्ती का कण्ठ-स्वर बनाने में समाप्त कर दी अर्थात् उसका कण्ठस्वर अति मृदु और अति मधुर था / विद्याधर के शब्दों में ( अत्रातिशयोक्तिपरिसंख्यालंकारसंकरः) अतिशयोक्ति इस रूप में हो सकती है कि ब्रह्मा की मृदुत्व-मुद्रा के साथ समाप्ति का सम्बन्ध न होने पर भी सम्बन्ध बताया गया है / परिसंख्या भी इस रूप में हो सकती है कि मृदुत्वमुद्रा अन्य पदार्थों से हटाकर दमयन्ती की वाणी पर ही स्थापित की गई है। 'वेधा' 'विधा' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। प्रसूनवाणाद्वयवादिनी सा काचिद्विजेनोपनिषपिकेन / अस्याः किमास्यद्विजराजतो वा नाधीयते भैक्षभुजा तरुभ्यः // 48 // अन्वयः-वा तरुभ्यः भैक्ष-भुजा पिकेन द्विजेन प्रसूनबाणाद्वयवादिनी सा का अपि उपनिषत् अस्याः आस्य-द्विजराजतः न अधीयते किम् ? टीका-तरुभ्यः आम्रादिभ्यो वृक्षेभ्यः भैक्षम् भिक्षा-समूहम् भुङ्क्ते भक्षयतीति तथोक्तेन ( उपपद तत्पु० ) वृक्षेभ्यः फल-पुष्प-मञ्जर्यादिरूपेण भिक्षाम् आदायेत्यर्थः पिकेन कोकिलेन द्विजेन पक्षिणा प्रसूनानि पुष्पाणि बाणाः शराः ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतस्य ( ब० वी० ) कामस्येत्यर्थः अद्वयम् अद्वतं ( 10 तत्पु० ) वदतीति तथोक्ता ( उपपद तत्पु० ) सा दमयन्ती-वाक का अपि अविर्वचनीया उपनिषत् रहस्यात्मकग्रन्थ इत्यर्थः अस्याः दमयन्त्याः आस्यम् मुखम् एव द्विजराजः ( कर्मधा० ) द्विजानां नक्षत्राणां राजा स्वामी तस्मात् चन्द्रादित्यर्थः ( 10 तत्पु० ) न अधीयते पठ्यते किम् ? अपि तु अधीयते एवेति काकुः / जगति कामसन्देशप्रदायिना पिकेन कामाद तसिद्धान्तप्रतिपादकदमयन्तीमुखचन्द्रसकाशात् कामरहस्यशिक्षा गृह्यते इवेति भावः / अत्र व्यञ्जनया अयमपरोऽप्यर्थों ध्वन्यते यथा-तरुसदृशेभ्यो गृहस्थेभ्यः भैक्षमादाय केनापि द्विजेन-ब्राह्मणेन-द्विजराजस्य श्रेष्ठब्राह्मणस्य आचार्यरूपस्य सकाशात् ब्रह्माद्व तसिद्धान्तप्रतिपादिका उपनिषद् अधीयते / / 48 // व्याकरण-भैक्षम् भिक्षाणां समूह इति भिक्षा + अण् / द्विजेन इसकी व्युत्पत्ति हेतु पीछे श्लोक 45 देखिए। द्विज नक्षत्रों को भी संभवतः इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे भी एकबार उत्पन्न होकर दिन में नष्ट हो जाते हैं और फिर
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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