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________________ सप्तमः सर्ग. 167 टिप्पणी-रेखा खींचकर गिनती करना प्रसिद्ध ही है। दमयन्ती के अधर पर पड़ी छोटी-छोटी सुन्दर रेखाओं पर कवि की यह कल्पना है कि वे मानो ब्रह्मा द्वारा विद्याओं के सूचक चिह्न बनाये हुए हों। उत्प्रेक्षा अलंकार है। विद्याधर हेतु अलंकार भी कह रहे हैं / 'विद्या' 'विदर्भे' में छेक 'संख्यातवान्' 'कौतुकवान' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। संभुज्यमानाद्य मया निशान्ते स्वप्नेऽनुभूता मधुराधरेयम् / असोमलावण्यरदच्छदेत्थं कथं मयैव प्रतिपद्यते वा // 42 // अन्वयः--निशान्ते स्वप्ने मया संभुज्यमाना इयम् मधुरांधरा अनुभूता, वा ( इयम् ) इत्थम् असीम लावग्य-रदच्छदा ( अस्तीति ) कथम् मया एव प्रतिपद्यते ? टीका--निशायाः रात्रेः अन्ते अवसाने रात्रेः अन्तिम प्रहरे इत्यर्थः (10 तत्पु०) स्वप्ने स्वप्नावस्थायाम् मया संभुज्यमाना संभोगविषयीक्रियमाणा इयम् एषा दमयन्ती मधुरः माधुर्यपूर्ण: अधरः अधरोष्ठः (कर्मधा०) यस्याः तथाभूता (ब०वी०) अनुभूता अनुभवविषयीकृता वा अथवा अन्यथेत्यर्थः इयम् इत्थम् एवम् न सीमा अवधिः यस्य तथाभूतम् ( नन ब० वी० ) लावण्यं सौन्दर्यम् ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतः (ब० वी० ) रदच्छदः ओष्ठः ( कर्मधा० ) यस्याः तथाभूता ( ब० वी० ) अस्ती कथम् केन प्रकारेण मया एव प्रतिपद्यते स्वीक्रियते विश्वस्यते इति याक्त् / यथा संभोगं कुर्वंता मया मधुराधरत्वेनेयं स्वप्नेनुभूता तथा जाग्रदवस्थायामपि दृश्यते इति भावः / / 42 // व्याकरण-संभुज्यमाना सम् + /भुज् + शानच् ( कर्मवाच्य ) / मधुर मधुः माधुर्यमस्यास्तीति मधु + र ( मतुबर्थ ) / इत्थम् इदम् + थम् ( प्रकारवचने ) / रदच्छदः छदतीति छद् + अच् ( कर्तरि ) रदानां ( दन्तानाम् ) छदः। अनुवाद-रात्रि की समाप्ति पर स्वप्न में संभोग करते समय यह ( दम. यन्ती ) मुझे मधुर अधर वाली अनुभूत हुई. अन्यथा यह इस प्रकार असीम लावण्य-भरे अधर वाली है-इस ( बात ) का कैसे मैं ही विश्वास कर पाता ? टिप्पणो-जैसे सपने में दमयन्ती के साथ भोग-विलास में नल ने चुम्बन के समय उसे मधुर अधरवाली पाया, वैसे ही वह जाग्रदवस्था में भी थी। वैसे
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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