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________________ सप्तमः सर्गः 159 टिप्पणी-दमयन्ती के नयन बड़े चञ्चल हैं और चञ्चल का काम चलना ही होता है। दोनों नयनों ने शिर के पीछे से चलकर आपस में मिल जाना था, किन्तु बीच में कानों की खाइयों ने उनके लिए गिर पड़ने का खतरा खड़ा कर दिया। बेचारे वापस मुड़ गये, मिल न सके / भाव यह निकला कि उसके नयन कानों तक गये हुए हैं और बड़े चंचल हैं। यहाँ भी कवि की कल्पना ही है कि वे गिर पड़ने से डर गये। अतः उत्प्रेक्षा है, जो गम्य है / इसके साथ नयनों में चेतन व्यवहार-समारोप होने से समासोक्ति भी है / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है / केदारभाजा शिशिरप्रवेशात्पुण्याय मन्ये मृतमुत्पलिन्या। जाता यतस्तत्कुसुमेक्षणेयं यातश्च तत्कोरकदृक्चकोरः // 35 // अन्वयः- केदारभाजा उत्पलिन्या शिशिर-प्रवेशात् पुण्याय मृतम् ( इति ) मन्ये यतः इयम् तत्कुसुमेक्षणा जाता, चकोरः च तत्कोरक-दृक् जातः / टीका-केवारं जलपूर्ण क्षेत्रम् ('केदारः क्षेत्रस्य तु' इत्यमरः) भजति सेवते इति तथोक्तया केदारस्थयेत्यर्थ: ( उपपद तत्पु० ) उत्पलिन्या नीलकमलिन्या शिशिरस्य शिशिरों: प्रवेशात् प्रारम्भात् कारणात् पुण्याय जन्मान्तर-सुकृताय सुकृतं प्राप्तुमित्यर्थः मृतम् मृत्युः प्राप्त: इति मन्ये अवगच्छामि यतः यस्मात् इयम् दमयन्ती तस्याः उत्पलिन्याः कुसुमे पुष्पे नीलोत्पले इति यावत् (10 तत्पु० ) एव ईक्षणे नयने ( कर्मधा० ) यस्याः तथाभूता (ब० वी०) जाता संवृत्ता, चकोरः च तस्या उत्पलिन्याः कोरके मुकुले ( 10 तत्पु० ) एव दृशौ नयने ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतः ( ब० बी० ) जातः / उत्पलिनी पुण्यार्जनायेव शिशिरे स्वतनूबलिदानमकरोत्, तत्फलस्वरूपं चेह जन्मनि तस्याः कुसुमद्वयम् दमयन्त्याः नयनयुगलं तस्याः कोरकद्वयं च चकोरस्य नयनयुगलं जातमिति भावः // 35 // व्याकरण केदारः के ( शरीरे ) दारो ( हलेन) दारणम् यस्य (ब० वी०) ०भाजाभज् + क्विप ( कर्तरि ) तृ० / शिशिरः यास्काचार्यानुसार शीर्यन्तेऽस्मिन् पत्राणि ( पृषोदरादित्वात् साधुः)। पुण्याय पुण्यम् अर्जयितुम्, तुमुन् के कर्म को चतुर्थी ("क्रियार्थोपपदस्य-२।३।१४)। मृतम् /मृ + क्त ( भाववाच्य ) / उत्पलिन्या उत्पलान्यस्यां सन्तीति उत्पल + इन् + ङीप् / ईक्षणम् ईक्ष्यतेऽनेनेति ईक्ष् + ल्युट् ( करणे ) /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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