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________________ सप्तमः सर्गः 143 यन्ती का नख-शिख अर्थात् शिर से लेकर पाँव तक का वर्णन करने जा रहा है। इस और अगले दो श्लोकों में कवि उसके केश-कलाप का चित्र खींच रहा है / केश-कलाप को दमयन्ती ने सिर पर स्थान दिया है, क्योंकि वह उत्तम है, ऐसा वीर है कि जिसने मुख के रूप में एकमात्र चन्द्रमा का साथ रखकर अनेकों चन्द्रमाओं को साथ रखने वाले मयूर के कलाप को परास्त कर दिया है। मुख और चन्द्र की मित्रता परस्पर सादृश्य रखने के कारण ही हुई है / मयूर-पक्ष में चन्द्र का अर्थ है चन्दा अर्थात् रंग-बिरंगे चन्द्राकार चिह्न। पक्ष का अर्थ मुख के सम्बन्ध में मित्रता है जब कि मयूर के सम्बन्ध में पंख / अच्छा होता यदि कवि 'कचौघः' के स्थान में कचकलापः देता। हमारे विचार से पक्ष और चन्द्र के विभिन्न अर्थों का श्लेष-वश अभेदाध्यवसाय होने से यहाँ भेदे अभेदाति. शयोक्ति है। विद्याधर और मल्लिनाथ चुप हैं। 'पक्ष' 'पक्ष' और 'कलापि' 'कलाप' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। अस्या यदास्येन पूरस्ति रश्च तिरस्कृतं शीतरुचान्धकारम् / स्फुटस्फुरद्भङ्गिकचच्छलेन तदेव पश्चादिदमस्ति बद्धम् // 21 // अन्वयः-अस्याः आस्येन शीतरुचा पुरः तिरः च यत् अन्धकारम् तिरस्कृतम्, तत् एव इदम् स्फुट च्छलेन पश्चात् बद्धम् अस्ति। टीका-अस्याः दमयन्त्याः आस्येन मुखेन एव शीता रुक कान्तिः ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतेन ( ब० वी० ) शीतांशुना चन्द्रणेति यावत् पुरः अग्रे तिरः दक्षिण-वामभागयोरित्यर्थः च यत् अन्धकारम् तमः ( 'अन्धकारोऽस्त्रियाम्' इत्यमरानुसारेणात्र नपुं. ) तिरस्कृतम् अपसारितम् पराजितमित्यर्थः तत् अन्धकारम् एव इदम् स्फुट स्पष्टं यथास्यात्तथा स्फुरन्तः लसन्तः भङ्गिनः भङगुराश्च ये कचाः केशाः ( कर्मधा० ) तेषां छलेन ब्याजेन (10 तत्पु० ) पश्चात् पश्चाद्भागे बद्धम् संयतम् अस्ति / दमयन्त्याः मुख-पश्चाद्-भागे केश-कलापो बद्धोऽस्ति / अत्र कविरुत्प्रेक्षते मुखरूपचन्द्र णाग्रतः वाम-दक्षिणभागतश्चापि निरस्तोऽन्धकारः केशकलाप-च्छलेन पश्चात्तिष्ठति, पश्चाद्भागे चन्द्रप्रकाशागमनादिति भावः // 21 // व्याकरण-आस्येन अस्यतेऽनादिकमत्रेति अस् + ण्यत् ( अधिकरणे ) / रुक रुच् + क्विप् ( भावे) / भनिन् भङ्गः ( कौटिल्यम् ) अस्यास्तीति भङ्ग + इन् ( मतुबर्थ ) /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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