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________________ 126 नैषधीयचरिते ___अनुवाद-प्रिया ( दमयन्ती ) के अंगों की पथिका ( अतएव ) ललचाई हुई नलकी आँखें मुड़-मुड़कर कुचों पर भ्रमण करती हुई ऐसी शोभा दे रही थी जैसे कि उन ( कुचों) पर हुए कस्तूरी के लेप के रूप में अन्धकार के कारण वे रास्ता भूल गई हों।६।। टिप्पणी-कुचों पर कस्तूरी-द्रव का लेप काला-काला था, जो आँखों के लिए अंधेरा बन गया। वे बेचारी मार्ग भटक गई, और लौट-लौट कर कुचों पर ही आ जाती थीं जैसे कि दिग्भ्रम में सभी किया करते हैं। भाव यह है कि नल की आँखें वार-बार उसके कुचों पर पड़ती रहती थी; वहाँ से हटती ही नहीं थीं। थहाँ मृगनाभि-लेप पर तमस्त्वारोप होने से रूपक है जो आँखों को हुए दिग्भ्रम की कल्पनायें उत्प्रेक्षा बना रहा है। इस तरह इन दोनों का अङ्गांगिभाव संकर है / 'निवृत्त्य निवृत्त्य' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। विभ्रम्य तच्चारुनितम्बचक्रे दूतस्य दृक्तस्य खलु स्खलन्ती। स्थिरा चिरादास्त तदूरुरम्भास्तम्भावुपाश्लिष्य करेण गाढम् // 7 // अन्वयः-तच्चारु-नितम्बचक्रे विभ्रम्य स्खलन्ती खलु तस्य इतस्य दृक् तदूरु-रम्भास्तभी करेण गाढम् उपाश्लिष्य चिरात् स्थिरा आस्त / टोका-तस्याः दमयन्त्या चारु सुन्दरम् (10 तत्पु० )नितम्बः श्रोणिः एव चक्रम् मण्डलम् तस्मिन् ( उभयत्र कमंधा० ) विभ्रम्य मण्डलाकारेण भ्रमणं कृत्वा अतएव स्खलन्ती पतन्ती खलु इव तस्य दूतस्य नलस्य दृक् दृष्टिः तस्याः दमयन्त्याः ऊरू सक्थिनी एव रम्भास्तम्भौ ( कर्मधा०) रम्भायाः कदल्याः स्तस्भौ काण्डी ( 10 तत्पु० ) करेण रश्मिना एव करेण हस्तेन गाढम् दृढम् यथा स्यात्तथा उपाश्लिष्य आलिङ्गय गृहीत्वेति यावत् चिरात् चिरकालम् स्थिरा निश्चला आस्त स्थितवतीत्यर्थः, यथा कापि बालिका मण्डलाकारे भूखण्डे मण्डलाकारेण भ्रान्त्वा भ्रान्त्वा अन्ते आत्मानं पतनात् रक्षितुं कमपि स्तम्भ हस्ताभ्याम् आलिङ्गय तिष्ठति तथैव नल-दृष्टिरपि दमयन्त्याः गोलाकारे नितम्बे भ्रमन्ती पश्चात् ऊरु-प्रदेशे तस्याः स्थिराऽभवदिति भावः // 7 // व्याकरण-स्खलन्ती /स्खल् + शतृ + ङीप् / दृक् पश्यतीति दृश् + क्विप् ( कर्तरि ) / गाढ /गाह + क्त ( कर्तरि ) / आस्त/आस् + लट् / / अनुवाद-उस ( दमयन्ती ) के सुन्दर नितम्ब-रूपी चक्र पर धूमकर
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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