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________________ षष्टः सर्गः अध्वाग्रजाग्रन्निभृतापदन्धुबन्धुर्यदि स्यात्प्रतिबन्धुमहः / जोषं जनः कार्यविदस्तु वस्तु प्रच्छ्या निजेच्छा पदवीं मुदस्तु // 107 // अन्वयः (हे सख्यः / ) यदि अध्वा दन्धुः स्यात् ( तर्हि ) बन्धुः प्रतिबन्धुम् अर्हः / कार्यविद् जनः जोषम् अस्तु / मुदः पदवीम् वस्तु निजेच्छा प्रच्छया। टीका-(हे सख्यः ! ) यदि चेत् अध्वनः मार्गस्य अग्रे पूरो भागे / ( 10 तत्पु० ) जाग्रत् स्थित इत्यर्थः निभृतः प्रच्छन्नः पत्रादिभिरावृत इति यावत् आपद् विपत्तिः एव अन्धुः कूपः ('पुंस्येवान्धुः प्रहिः कूपः' इत्यमरः) ( सर्वत्र कर्मचा०) स्यात्, तर्हि बन्धुः सुहृत् प्रतिबन्धुम् अग्रे गच्छन्तं स्वमित्रं गमनात् प्रतिषेद्धमित्यर्थः अर्हः, योग्यः, मार्गे घासादिभिराच्छादितेषु गर्तेषु को नाम बन्धुः पतन. भयात् स्वसुहृदं तत्र गन्तुमनुमन्येत? इति भावः / कार्य वस्तु, वस्तुस्थितिमित्यर्थः वेत्ति जानातीति तथोक्तः ( उपपद तत्पु० ) जनः जोषम् तूष्णीम् अस्तु भवेत, अत्र नास्ति प्रच्छन्न-कूप इति सम्यक् जानन् बन्धुः तूष्णीं तिष्ठेत् मित्रं च गमनात् न वारयेदित्यर्थः / मुदः हर्षस्य पदवीम् मार्गम् एव वस्तु निजा स्वकीया इच्छा ईहा ( कर्मधा० ) प्रच्छया प्रष्टव्या, आनन्द-मार्ग-गमने जनेन स्वेच्छेवानुसतव्येति भावः // 107 // __व्याकरण . आपत् आपततीति आ + पत् + क्विप् ( कर्तरि) / बन्धुः यास्कानुसार 'बध्नातीति सतः' /बन्ध् + डः / अर्हः अर्हतीति /अर्ह + अच ( कर्तरि ) / कार्यवित कार्य +/विद् + क्विप् ( कर्तरि ) / प्रच्छ्या प्रच्छ + ण्यत्, प्रच्छ धातु के द्विकर्मक होने से गौण कर्म निजेच्छा को कर्मवाच्य में प्रथमा / ___ अनुवाद--( हे सखियो ! ) यदि मार्ग में विपत्ति-रूप कुआँ ( घारा आदि से ) ढका हुआ आगे पड़ता हो, तो बन्धु को उचित है कि वह ( मित्र को ) रोक दे। किन्तु वास्तविक स्थिति को जानने वाला ( बन्धु ) चुप ही रहे। आनन्द-मार्ग की वात के लिए ( मनुष्य को ) अपनी इच्छा पूछनी चाहिए // 107 // टिप्पणी-यहाँ कवि सामान्य बात उठाकर प्रस्तुत दमयन्ती की ओर लगा रहा। दमयन्ती का सखियों को कहने का अभिप्राय यह है कि नल के साथ मेरे अनुराग के पथ में यदि तुम प्रच्छन्न कुआँ, भयानक खतरा देख रही
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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