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________________ षष्ठः सर्गः अनुवाद-श्रेष्ठ आर्य लोग ( ब्रह्मचर्यादि ) आश्रमों में से गृहस्थाश्रम की तरह वर्षों में से जिस भारतवर्ष की सराहना किया करते हैं, वहीं मैं पति की सेवा द्वारा ढेरों सुखों से संमिश्रित धर्म का लाभ करना चाहती हूँ // 97 / / टिप्पणी-नल के वरण के पोछे मेरा यही ध्येय है कि भारत में उनको सेवा में रहकर जहाँ मुझे सभी तरह के सुख प्राप्त होंगे, वहाँ धर्माचरण की सुविधा भी मिलती रहेगी। यहाँ सभी आश्रमों से कवि ने गृहस्थाश्रम को जो प्रधानता दी है, वह धर्मशास्त्र के अनुसार ही है, देखिये मनु-“यथा वायु समाश्रित्य वर्तन्ते सर्वजन्तवः / तथा गृहस्थमाश्रित्य वर्तन्ते सर्व आश्रमाः / / यस्मात् त्रयोऽप्यामिणो ज्ञानेनान्नेन चान्वहम् / गृहस्थेनैव धार्यन्ते तस्माज्ज्येष्ठाश्रमो गृही" / / ( 377-78 ) / पुराणों के अनुसार पृथिवी जिन नौ खण्डों वर्षों में बंटी हुई है, वे ये हैं -१-कुरु, २-हिरण्मय, ३-रम्यक, ४-इलावृत, ५-हरि, ६-केतुमाल, 7 भद्राश्व, ८-किन्नर और ९-भारत / यहाँ भारत की गृहस्थाश्रम से तुलना करने में उपमा है / शब्दालंकार छेक और वृत्त्यनुप्रास है / स्वर्ग सतां शर्म परं न धर्मा भवन्ति भूमाविह तच्च ते च / शक्या मखेनापि मुदोऽमराणां कथं विहाय त्रयमेकमाहे // 98 // अन्वयः- स्वर्गे सताम् परम् शर्म ( अस्ति ), धर्माः न भवन्ति / इह भूमी तत् च ते च ( भवन्ति ) / अमराणाम् मुदः मखेन अपि शक्याः ; ( तस्मात् ) त्रयम् विहाय कथम् एक ईहे। ____टीका-स्वर्गे स्वर्गलोके सताम् निवसतामित्यर्थः परम् केवलम् शर्म सुखम् एवास्तीति शेषः भोगभूमित्वात् धर्माः सुकृतानि न भवन्ति / इह अस्यां भूमौ भारतवर्षे तत् सुखम् ते धर्माश्वापि भवन्ति भारतस्य भोग-धर्मोभयभूमित्वात् / अमराणाम् देवानाम मुदः हर्षाः मखेन यज्ञेन अपि शक्याः कर्तुं शक्याः, यज्ञकरणात् इन्द्रस्यापि प्रीतिः सुकरी / इह भोगा अपि सुप्रापाः, धर्माश्चापि सुकराः, देवप्रीतिरपि सुसाध्या इत्यर्थः / तस्मात् त्रयम् उक्तत्रीन् पदार्थान् विहाय परित्यज्य कथम् केन प्रकारेण एनम् भोगमेव ईहै इच्छाभि / इन्द्रवरणे स्वर्गे केवलम् आनन्द एब नलवरणे भुवि तु त्रयम्, अतः को नाम बुद्धिमान् वयं त्यजति, एकमेव चोपादत्ते ? // 99 // व्याकरण-सताम् / अस् + शतृ ष० / शक्याः Vशक् + यत् / कभी
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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