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________________ [ 2 ] टीकाओं का पठन-पाठन में प्रचार हैं। प्राचीन टीकाकारों की तरह नारायण जहाँ 'खण्डान्वय' से चलते हैं, वहाँ मल्लिनाथ 'दण्डान्वय' से। नारायणी टीका बड़ी विस्तृत है और अनेकों अर्थों का विकल्प सामने रखकर पाठक को द्विविधा में डाल देती है कि कौन-सा अर्थ लें, कौन-सा न लें, जब कि मल्लिनाथ टीका संक्षिप्त है / नारायण ने अलंकारों का कोई विवेचन नहीं किया, मल्लिनाथ ने किया है। ऐसी स्थिति में कोमल-मति छात्रों हेतु एक सरल, प्रकरण-परक, आलोचनात्मक ढंग से लिखी टीका की कमी अनुभव हो रही थी। हाल ही में पं० जगद्राम शास्त्रो ने पाँच सगों तक एक टीका अवश्य लिखी है, किन्तु वे अपेक्षित आलोचनात्मक ढंग नहीं अपना सके। इसलिए इस कमी की पूर्ति हेतु मेरा यह लघु प्रयास है। इसमें मैं कहाँ तक सफल हुआ है-यह छात्र-वर्ग ही बताएगा। मूल-पाठ मैंने नारायण का अपनाया है, किन्तु जीवातु की तरह मैं दण्डान्वय से चला हूँ। अन्वय और टीका करके टिप्पणी में हरेक बात की आलोचना कर गया हूँ। व्याकरण का पृथक् स्तम्भ बनाकर शब्दों की व्युत्पत्ति भी बता दी है / लाघव की दृष्टि से समासों को मैं व्याकरण-स्तम्भ में न रखकर टीका के साथ-साथ ही ब्रैकटों में स्पष्ट कर गया हूँ। जैसा कि नियम है, अनुवाद की माषा शाब्दिक और चलती हो रखी है। आरम्म में एक आलोचनात्मक विस्तृत भूमिका भी दे दी है। प्रस्तुत पुस्तक लिखने में मुझे कृष्णकान्त हण्डीको के टिप्पणों और अंग्रेजी अनुवाद तथा म० म० शिवदत्त द्वारा सपादित नारायणी टोका वाले नैषध से सहायता मिली है। चौखम्बा वालों द्वारा प्रकाशित मल्लिनाथ की 'जीवातु' से मी मैंने लाम उठाया है। अतः इन समो महानुभावों का मैं कृतश हूँ। मैं मोतीलाल बनारसीदास वालों का भी आभारी हूँ, जिन्होंने इस पुस्तक को प्रकाशित करने का मार उठाया है। दिल्ली से दूर रहने के कारण मुझे प्रफ देखने की सुविधा नहीं मिली, इसलिए मुद्रण में जो कुछ अशुद्धियां रह गई हो, उनके लिए मैं पाठकों से क्षमाप्राथी हूँ। देहरादून दीपावली 22-10-76 मोहनदेव पन्त
SR No.032783
Book TitleNaishadhiya Charitam 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1997
Total Pages164
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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