SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 891
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1580 नैषधमहाकाव्यम् / अष्टाङ्गयोगेषु ध्यानेषु वा विषये प्रमोदार्णवं परमानन्दस्वरूपं परं वागायगोचरं ब्रह्म साक्षात्कुरुते / म परं पूर्वोक्तगुणविशिष्टो ब्रह्मविदेव, किंतु यदीयं काव्यं मधुवर्षि अतिसरसरवादमृतवर्षि / न परं पूर्वविशेषणविशिष्टोऽतिसरसो महाकविरेव, किंतु तर्कशास्त्रेष्वपि यस्योक्तयो धर्षिताः पराभूताः परे प्रतिवादिनो याभिस्तादृश्यः। तस्य विद्वच्चक्रचूडामणेः श्रीहर्षकवेरियं काव्यरचनारूपा कृतिः कृतिनां सुधियां मदे मान. दायाभ्युदीयात् , कृतिनामानन्दं कुर्वती सत्याकल्पमतिवृद्धि प्राप्नुयादित्याशीः / सर्वत्र 'यत्' शब्दनिर्वाहो गुण एव / अभ्युदीयादिति, 'ई गतौ' इत्यस्य रूपम् // 4 // सन्तः सन्तु परप्रयोजनकृतः कल्पद्रुमन्तः सदा स्वस्मिन्नेव पथि प्रवर्तनपराः सत्कीर्तयश्चापरे / अन्ये निस्पृहणाः श्रितश्रुतिपथा दीव्यन्तु भव्याशया काकन्तः कलहप्रियाः खलजना जायन्तु जीवन्तु वा॥ वासनामस्य रामस्य किंकरस्य जगत्पतेः। नो चेत्पूरय कल्पेशकल्पस्य तव किंकरः॥ इति श्रीबेदरकरोपनामकश्रीमनरसिंहपण्डितात्मजनारायणकते नैषधीयप्रकाशे'द्वाविंशः सर्गः समाप्तः॥ समाप्तञ्चेदं नारायणीटीकया परिपूरितं द्वाविंशसर्गसमन्वितं ... मल्लिनाथीटीकोपेतं नैषधमहाकाम्यम् / जो (श्री हर्ष' नामक महाकवि ) कान्यकुम्ज-नरेश (कन्नौजके राजा) से ( समस्त विदानोंसे श्रेष्ठतासूचक दो बीड़ा पान तथा आसनको पाते ) हैं, ( केवल राजमान्य ही नहीं, अपितु ) जो समाधियों ( अष्टाङ्गयोगों ) में परमानन्दसागर ब्रह्मका साक्षात्कार करते हैं, जिनका महाकाव्य ( अतिशय सरस होनेसे ) अमृत बरसानेवाला है और तर्कविषयक जिसकी उक्तियां प्रतिवादियोंको पराजित करनेवाली है; उस श्रीसे उपलक्षित 'श्रीहर्ष कवि की यह रचना ( 'नैषधचरित' नामक महाकाव्य ) विद्वानोंके हर्षके लिए होवे // 4 // द्विसहस्राधिके वर्षे दिमिते मार्गशीर्षके / अमायां मास्करे वारे परिपूर्णा 'मणिप्रभा // 1 // यह मणिप्रभा' टीकामें नैषधचरितका बाइसवा सर्ग समाप्त हुआ // 22 // व्याकरण- साहित्याचार्य, साहित्यरत्न, रिसर्चस्कालर, मिश्रोपाह्र श्री पं० हरगोविन्द शानिरचित 'मणिप्रमा' नामक राष्ट्रभाषानुवाद समाप्त हुआ।
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy