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________________ 1408 नैषधमहाकाव्यम् / मानवाली नायिकाके समान शोभित हुई)। [नलने विष्णु भगवान् के दोनों चरणोंपर विकसित मल्लिका-पुष्पकी मालाका समर्पित किया तो वह भगीरथकी तपस्यासे प्रसन्न होकर विष्णु भगवान्के चरणोंसे निकली हुई गङ्गा-जैसी शोभती थी ] // 47 // (युग्मम् ) स्वानुरागमनघः कमलायां सूचयन्नपि हृदि न्यसनेन / गौरवं व्यधित वागधिदेव्याः श्रीगृहोद्धनिजकण्ठनिवेशात् // 4 // इत्यवेत्य वसुना बहुनाऽपि प्राप्नुवन्न मुदमर्चनया सः / सूक्तिमौक्तिकमयैरथ हारैभक्तिमैहत हरेरुपहारः / / 46 / / स्वेति / अनघः निष्पापः, विष्णुरिति शेषः / हृदि वक्षस, न्यसनेन स्थापनेन, कमलाया एवेति भावः / कमलायां लक्ष्म्याम्, स्वानुगगं विजप्रेम, सूचयन् प्रकट यन् अपि, श्रियः तस्याः कमलाया एव, गृहात् निवासभूतात् , निजवक्षसः इति शेषः / ऊ उपरिस्थिते, निजे स्वकीये, कण्ठे गलदेशे, निवेशात् स्थापना हेतोः, वागधिदेव्याः वाग्देवतायाः सरस्वत्याः, गौरवं पूजाम्, सम्मानाधिक्यमित्यर्थः / कमलापेक्षया इति भावः / व्यधित कृतवान् / इतीति / सः नलः, इति पूर्वोक्तप्रकारं विष्णोर्मनोभावम, भवेत्य ज्ञात्वा, बहुना प्रभतेनापि, वसुना धनेन, लक्ष्मीरूपेण मणिरत्नादिना इति भावः / लम्या च इति ध्वन्यते, विहितया इति शेषः / अर्च नया पूजया, अपीति शेषः / मुदं प्रीतम्, न प्राप्नुवन् न लभमानः सन् , अथ अनन्तरम् , सूक्तिमौक्तिकमयः मूक्तयः सरसपनि बद्धानि स्तोत्राण्येव, मौक्तिकानि मुक्तासमूहाः, विशदत्वादिति भावः / तन्मयैः तदात्मकैः, हारैः हाररूपैः, सरस्वत्या इति च ध्वन्यते, उपहारः उपाय, हरेः नारायणस्य, भक्तिम् ऐकान्तिकसेवा. विशेषम्, ऐहत अचेष्टत, हरिभक्ति दर्शयितुमच्छदिति भावः / हरिणा कमलातः वाण्याः अधिकं गौरवं कृतमतः सरस्वतीकरणकार्चनेनैवास्मिन् अधिका भक्तिः प्रद. शिता भविष्यतीति मत्वा नलः सरस्वतीमयैः सूक्तम्तमभजत इति निष्कर्षः॥४८-४९॥ 'निर्दोष विष्णु भगवान् ( लक्ष्मीको ) हृदयमें रखनेसे लक्ष्मीमें अपने अनुरागको सूचित करते हुए भी लक्ष्मीके निवासस्थान (विष्णुहृदय ) के ऊपर कण्टमें ( सरस्वतीको ) रखनेसे सरस्वतीका ( लक्ष्मीकी अपेक्षा अधिक ) गौरव किये है। इस बातको जानकर उस (नल ) ने बहुत-से स्वर्णकमलादि धनों के द्वारा पूजा करनेसे भी पूर्णतः हर्षित नहीं होते हुए, सूक्तिरूप मोतियों के बने समर्पित हारोंसे विष्णुकी भक्ति करने लगे। [जिस प्रकार कोई पति किसी स्त्रीको सुन्दर स्थानमें रखकर उसमें अपने स्नेहको सूचित करता हुआ भी उस स्त्रीसे अधिक स्नेहपात्र किसी दूसरी स्त्रीकी उससे भी अच्छे उच्चतम स्थानमें रखकर उसका गौरव बढ़ा देता है; उसी प्रकार हृदयमें लक्ष्मीको रखनेसे उसमें अपने अनुरागको प्रकट करते हुए भी विष्णु भगवान् लक्ष्मीके निवासस्थान हृदयसे भी ऊपर कण्ठमें 1. 'प्राप्तवान्न' इति पाठान्तरम् / 2. 'सूक्त' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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