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________________ विंशः सर्गः। 1316 ( दमयन्ती) का सम्भोग (बालाके साथ बलात्कारपूर्वक सम्भोग करनेका कामशास्त्रमें निषेध होनेसे' ) कामशास्त्रके रहस्यश आप कैसे करते हैं [ कामशास्त्ररहस्यवेदी आप बाला एवं नवोढ़ा दमयन्तीके साथ यथेष्ट सम्भोग नहीं कर सकने तथा सम्भोग करनेपर भी दुर्वार लज्जावश यह दमयन्ती उस सम्भोगवार्ताको हमलोगोंसे किस प्रकार कहती ? आपके द्वारा किये गये सम्मोग आदिकी चर्चा दमयन्तीने हमलोगोंसे नहीं की है, अत एव यह असत्य. भाषिणी नहीं है, आपको व्यर्थ ही ऐसा उपालम्भ देकर हमें वञ्चित करना उचित नहीं है / अथवा-कामशास्त्रज्ञ आप नवोढ़ा एवं बाला दमयन्तीका निर्भर सम्भोग किस प्रकार कर सकते हैं तथा उक्त कारणसे लज्जाशीला यह सखी हमलोगोंसे सह्य सम्भोगकी चर्चा क्यों करें अर्थात् जो बाला निर्भर सम्भोगद्वारा पतिसे पीड़ित होती है, वही उक्त सम्भोगजन्य पीड़ा मादिकी चर्चा सखियोंसे करती है; किन्तु कामशास्त्र के रहस्यवेत्ता आपने नवोढ़ा एवं बाला प्रिय सखी दमयन्तीको निर्भर सम्भोग करके पीड़ित नहीं किया और उसने भी इसीसे हमलोगोंसे इस विषयमें कुछ भी नहीं कहा, अत एव आपका उक्त उपालम्भ देना उचित नहीं / अथवा-कामशास्त्ररहस्यवेदी आपने नवोढ़ा एवं बाला दमयन्तीके साथ अनुराग एवं सामर्थ्यके अनुसार ही सम्भोग किया और लज्जाशीला इसने हमलोगोंसे कुछ भी नहीं कहा; अत एव तुम दोनों ही हमलोगोंको वञ्चित कर रहे हो / अथवा-शास्त्रज्ञ आप नवोढ़ा तथा बाला दमयन्तीका सम्भोग किस प्रकार किया ? उसे स्मरण कोजिये और यह हमलोगोंसे किस प्रकार कहती अर्थात् इसने हमलोगोंसे कुछ भी नहीं कहा-विपरीत लक्षणासे आपने इसके साथ सम्भोग किया और इसने हमलोगोंसे सब रहस्य कह दिया; अतः आप हमें क्यों वश्चित कर रहे हैं ? ] // 39 // नासत्यवदनं देव ! त्वा गायन्ति जगन्ति यम् / प्रिया तस्य सरूपा स्यादन्यथालपना न ते // 40 // अत्रैव यत् विशेषितवान् 'अलीकवाक्' इति तत्रोत्तरमाह-नासत्येति / देव ! हे महाराज! जगन्ति लोकाः, यं त्वां भवन्तम्, न असत्यं मिथ्या, वदनं भाषणं यस्य तं तादृशं सत्यवादिनमित्यर्थः / गायन्ति कीर्तयन्ति, तस्य तादृशसत्यवादिनः, ते तव, प्रिया स्निग्धा कान्ता, सरूपा समानरूपा, तवानुरूपसत्यवादिन्येवेत्यर्थः। स्यात् भवेत् , अन्यथा तद्विपरीतम् असत्यभूतम्, लपनं भाषणं यस्याः सा तादृशी, न नैव, स्थादिति पूर्वणान्वयः। पक्षान्तरे-यं त्वाम् असत्यवदनं मिथ्याभाषणशीलम् न गायन्ति ? इति काकुः, अपि तु गायन्त्येवेत्यर्थः, तस्य तादृशमिथ्यावादित्वेन गीतस्य, ते प्रिया सरूपा समानरूपा, तवानुरूपेत्यर्थः / स्यात् , अतः अन्यथालपना मिथ्या. 1. तच्च स्मरशास्त्रमित्थंरूपम् 'बाला बलान भुञ्जीत विरागोत्पत्तिशङ्कया। भुञ्जीत चेत्रपाभीतित्याजनक्रमसङ्गताम् // ' इत्यादि बोध्यम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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