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________________ 1302 नैषधमहाकाव्यम् / हाथमें ग्रहण करती हुई कमलतुल्य प्रफुल्लितनेत्रा वह दमयन्ती लक्ष्मीके समान शोभने लगी, क्योंकि लक्ष्मी भी स्वभावतः कमलतुल्य नेत्रवाली हैं तथा हाथमें कमल लिये रहती हैं ] // . प्रियेणाल्पमपि प्रत्तं बहु मेनेतरामसौ।। टेकलक्षतया दध्यौ दत्तमेकवराटकम / / 5 / / प्रियेणेति / अलौ भैमी, प्रियेण कान्तेन नलेन इष्टजनेन च, प्रत्तं दत्तम् / 'अच उपसर्गात्तः' इति दस्तादेशः / अल्पम् अपि किञ्चिदपि वस्तु, बहु प्रभूतं समधिकाद: रणीयन्न, मेनेतराम अतिशयेन मेने / 'किमेत्तिङव्ययात्-' इति आमु-प्रत्ययः। कुतः ? हि यस्मान् कारणात् , दत्तम् अर्पितम् , एकः एकसंख्यामात्रः, वराटकः बीजकोषो यस्य तत् तादृशं पद्मम् 'बीजकोषो वराटकः' इत्यमरः। एकवराटकम् एककपर्दकञ्च / 'कपर्दको वराटकः' इति हलायुधः / एकलक्षतया एकलक्षसंख्यक स्वेन तदेकपरतया लक्षसंख्यकधनत्वेन च / 'लक्षच संख्यायाम्' इति विश्वः / दध्यौ मेने, प्रियदत्तं वराटकमपि रत्नात् अतिरिच्यते इति भावः // 5 // प्रिय ( नल ) के द्वारा दिये हुए थोड़ा अर्थात् एक कमलको भी उस ( दमयन्ती) ने बहुत ( अत्यधिक, पक्षा०-अत्यादरणोय ) माना, क्योंकि श्रेष्ठ बोजकोषवाले उस दिये गये कमलको एकटक होकर ध्यान किया-देखा, ( अथ च-प्रियजनसे दी गयी थोड़ी-सी भी किसी वस्तुको इसने अत्यधिक माना, क्योंकि प्रियकी दी हुई एक कौड़ीको भी एक लाख धनके बराबर माना ) / [प्रियतमदत्त साधारण वस्तुका भी अधिक मानना दमयन्ती- जैसी साध्वी स्त्रीके लिए उचित ही है ] // 5 // प्रेयसावादि सा तन्वी त्वदालिङ्गनविघ्नकृत् / समाप्यतां विधिः शेषः क्लेशश्चेतास चेन्न ते ? / / 6 / / / प्रेयसेति / प्रेयसा प्रियतमेन नलेन, तन्वी कृशाङ्गी, सा दमयन्ती, अवादि कथिता / किमवादि ? तदेवाह-हे प्रिये ! चेत् यदि, ते तव, चेतसि मनसि, क्लेशः दुःखम् , मदागमनविलम्बजनितमिति भावः, न, भवेदिति शेषः / तर्हि त्वदालिङ्ग. नस्य तव आश्लेषजनितसुखस्य, विघ्नकृत् अन्तरायभूतः, शेषः प्रातः स्नानसन्ध्योपासनानन्तरं कर्तव्यतया अवशिष्टः, विधिः नित्याग्निहोत्रादेः अनुष्ठानम् , समा. प्यतां समाप्तिः विधीयताम् , मयेति शेषः, भवत्या एतेषां कर्मणां समाप्तिः अनुज्ञा. यतामित्यर्थः // 6 // प्रियतम ( नल ) ने तन्वी ( कृशोदरी दमयन्ती ) से कहा कि-'यदि तुम्हारे चित्तमें यलेश नहीं हो तो तुम्हारे आलिङ्गनके विघ्नकारक अवशिष्ट ( बचे हुए, अग्निहोत्रादि ) नित्यकर्मको भी ( मैं ) समाप्त कर लू' // 6 // 1. 'विधेः' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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