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________________ 641 पञ्चदशः सर्गः। किश्चास्माकनरेन्द्रभूसुभगतासम्भूतये लग्नकं देवेन्द्रावरणप्रसादितशचीविश्राणिताशीर्वचः // 90 / / वैदर्भीति / अखिलक्षौणीचक्रशतक्रतो अखिलभूलोकदेवेन्द्रे, अत्र अस्मिन् नले, वैदर्भाविपुलानुरागकलना दमयन्तीगाढानुरागलाभः, सा एव सौभाग्यं वाल्लभ्यम् (कर्म) तस्याः भैम्याः, वृत्तवृत्तक्रमैः अतीतचरित्रप्रकाशैः इन्द्रप्रतिषेधादिभिः(कर्तभिः) 'वृत्तं पद्ये चरित्रे त्रिवतीते दृढनिस्तले' इत्यमरः, निजगदे गदितं, तादृगनुरागाभावे कथमिन्द्रादिप्रतिषेध इति भावः / किञ्च, देवेन्द्रस्य अवरणेन वरणाकरणेन, प्रसादितया सन्तोषितया, शच्या विश्राणितं दत्तम् , आशीर्वचः एव अस्माकमियम् आस्माकी 'युष्मदस्मदोरन्यतरस्यां खञ् च' इति चकारादण 'तस्मिन्नणि च युष्माकास्माको' इति अस्माकादेशः / तस्याः नरेन्द्रभुवः राजपुत्र्याः भैम्याः, सुभगतायाः पतिवाल्लभ्यत्य, सम्भूतये लाभाय, लग्नकं प्रतिभूः 'स्युलग्नकाः प्रतिभुवः' इत्यमरः / अभूत् इति शेषः / स्त्रीणां सौभाग्यस्य शचीप्रसादलभ्यत्वादिति भावः // 10 // उस ( दमयन्ती) के भूतपूर्व चरितों ( इन्द्रादिका त्यागकर नलका वरण करना आदि ) के क्रमोंने पृथ्वीमण्डलके इन्द्र इस ( नल ) में दमयन्तीके गाढ स्नेहरूप सौभाग्यको कह दिया ( अथवा-हमलोगोंसे पढ़े गये नलके चरित-सम्बन्धी पद्य-समूहोंने दमयन्तीमें अधिक स्नेहरूप सौभाग्यको इस भूलोकके इन्द्र नलमें कह दिया। अन्यथा यह दमयन्ती स्वर्गाधीश देवेन्द्रादिका त्यागकर नलका वरण कैसे करती, इससे सूचित होता है कि नलमें ही दमयन्तीका प्रगाढ़ स्नेह है ) / और इन्द्रके वरण नहीं करनेसे प्रसन्न की गयी इन्द्राणीके दिये गये आशीर्वाद ( पाठा०-आशीर्वादरूप वेद अर्थात वेदतुल्य सत्य वचन ) 'हमलोगोंके राजा ( भीम ) की कन्या ( दमयन्ती ) के सौभाग्य की उत्पत्तिके लिए उत्तरदायी (जिम्मेदार ) हो गया। [दमयन्ती स्वयंवर में आये हुए इन्द्रको वरण कर लेती तो इन्द्राणी सपनी ( सौत ) होनेसे दुखित हाती, अतः वैसा ( इन्द्रका वरण ) नहीं करनेसे इन्द्राणीने प्रसन्न हो कर दमयन्ती के लिए जो आशीर्वाद दिया है, वही दमयन्तीके सौभाग्य-सम्पत्तिके लिए उत्तरदायी हो गया है। क्योंकि इन्द्राणीकी प्रसन्नता स्त्रियोंके सौमाग्यकी वृद्धिका कारण मानी जाती है ] // 90 // आसुत्राममपासनान्मखभुजां भैम्यैव राजबजे तादर्थ्यागमनानुरोधपरया युक्ताऽऽर्जि लज्जामृजा / आत्मानं त्रिदशप्रसाद फलितं पत्ये विधायानया हीरोषापयशःकथानवसरः सृष्टः सुराणामपि / / 91 / / आसुत्राममिति / राज्ञां भूभुजां व्रजे राजबजे स्वयंवरगतराजसमाजे, तादयेंन 1. '-ताशीःश्रुतिः' इति पाठान्तरम् / 'अयन्तु पाठः साधीयान्' इति प्रकाशः। 2. 'पत्ये नयन्त्यानया' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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