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________________ प्रथमः सर्गः। विशाल रथवाले तथा एक पहियेवाले सूर्य के 'मार्ग' अर्थात 'आकाश' अतद्रूप मर्याद दूसरे की अपेक्षासे रथको ले जानेवाले हरे रंगवाले उनके घोड़ोंको मुखके मोतर में इंसते हुए ('घोड़ेपर नल सवार हुए' ऐसा सम्बन्ध अग्रिम ( 1664) श्लोकसे करना चाहिये ) / [बड़े रथवाले तथा एक चक्र ( पहिये ) वाले सूर्यके मार्गमें उनके घोड़े दूसरोको सहायता से रथको ढोते थे, अतएव वे यशोहीन होनेसे हरे रंगके थे, किन्तु महारथ एकचक्रवती (सार्वमीम ) नळके मार्ग में यह घोड़ा विना किसीकी सहायताके रथको ढोता था, अतएव इससे उत्पन्न यशसे मानों यह नलका घोड़ा श्वेतवर्ण था, इसी कारण यह सूर्यके मतदूप उन घोड़ोंकी दांतोंकी शुभ्र किरणों के बहानेसे मानों हँस रहा था ] // 61 // सितत्विषश्चञ्चलतामुपेयुषो मिषेण पुच्छस्य च केसरस्य च / स्फुटाञ्चलच्चामरयुग्मचिह्नकरनिढुवानं निजबाजिराजताम् / / 62 / / सितेति / पुनः कथम्भूतम् 1 सितस्विषः विशदप्रभस्म चलतामुपेयुषः चालस्येत्यर्थः / पुउछस्य लागूलस्य केसरस्य ग्रीवास्थबालस्य चमिषेण भछलेन चलत. शामरयुग्मस्य चिह्नकै लक्षणैः स्फुटो प्रसिद्धां निजां वाजिराजता अश्वेश्वरत्वमनिह. वानं प्रकाशयन्तमिव / अश्वामिनः कथामरयुग्ममिति भावः / पूर्ववदलारः॥ __ श्वेत कान्तिवाले तथा चखल पूँछ तथा गर्दनके भयाकों (बालों ) के कपटसे डुडते हुए दो चामरों के चिह्नों के द्वारा अपने मश्वराजस्वको प्रगट करते हुए-('घोड़ेपर देना सवार हुए; ऐसा सम्बन्ध भग्रिम ( 1164 ) को कके साथ करना चाहिए)।, [ राणाके लमय पाश्वमें डुछाये बाते हुए श्वेतवर्ण दो चामरोंके समान पूँछ तथा गर्दनके श्वेतवर्ण पिलते हुए घोड़े के बाक चवर बन गये थे, जिससे वह अपने को घोड़ोंका राजा मर्याद अष्ठतम घोड़ा होना प्रगट करता था ] // 62 // अपि द्विजिह्वाभ्यवहारपौरुषे मुखानुषक्तायतवल्गुवल्गया। उपेयिवांसं प्रतिमलता रयस्मये जितस्य प्रसभं गरुत्मतः / / 63 / / अपीति / पुनः कथम्भूतं स्थितम् ? रयस्मये वेगप्रयतारकारे प्रसभं प्रसस जितस्य प्रागेव निजितस्य गरमतः मुस्वानुषक्ता वक्त्रलग्ना आयता दीघों वक्ष्ग रम्या च या वल्गा मुखरज्जुः तया तन्मिषेणेत्यर्थः। द्विजिह्वानामहीनामभ्यवहारे माहारे यत पौरुषे सभक्षणपुरुषकारेऽपि प्रतिमलता प्रतिद्वन्द्वितामुपेयिवांसं प्राप्तम् / तथा च गम्योरप्रेक्षयम / 'उपेयिवाननाश्वाननूचानश्चेति छ सुप्रत्ययान्तो निपातः // 63 // वेगके अमिमानमें बलात्कारमे जीते गये गरुड़के समक्षणरूप पुरुषार्थमें मी मुखमें पड़ी हुई लगाम ( श्वेतवर्ण साकार ) रस्सीसे प्रतिमलमावको प्राप्त-(बाड़ेपर वे नल सवार हुए' ऐसा सम्बन्ध अग्रिम ( 64 ) इलोकसे करना चाहिए ) / [इल घोड़ेने तीन वेगमें पहले ही गरुड़को बलात्कार पूर्वक पराजित कर दिया था, किन्तु गरुडकी दूसरी शक्ति सोको मक्षण करने में भी थी, उस शक्तिको भी यह घोड़ा मुखमें पड़ी हुई गामकी
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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