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________________ दशमः सर्गः। इत्युभयत्रापि विश्वः / यदुच्चैर्नागबलमहिसैन्यं 'ग्रहाभ्राहिगजे नागाः' इत्युभयत्रापि वैजयन्ती। कर्कोटको नाम नागविशेषः प्राग्भूयाचकर्ष तं नागबलमश्वतरो नाम नागविशेषोऽन्वगच्छत् / 'अश्वतरो वेसरे च नागराजान्तरेऽपि च' इत्युभयत्रापि विश्वः। कम्बलकर्कोटकाश्वतरादियुक्तो वासुकिश्च सबल आगत इत्यर्थः / अनोभयोः करिनागबलयोः प्रकृतत्वात् केवलं प्रकृतिश्लेषः // 8 // भूतलपर कुण्डिनपुरीको जानेवाले, राजाओंके झूल-सहित जिस महान् हाथियों के समूहको शीघ्रगामी ( या हृद्गामी ) सफेद घोड़ेने आगे होकर आकृष्ट किया, उस हाथियों के समूहको खच्चरों के समूहने अनुगमन किया। (पहले घोड़े, मध्यमें हाथी और पीछे खच्चर चलते थे)। ( पक्षा०-पृथ्वीके नीचे अर्थात् पातालमें स्थित, कुण्डिनपुरीको जाने वाले वासुकि ('वासुकि' नामक सर्पराज ) के कम्बल नामके सर्पके सहित जिस महान् नागसेना ( सर्पोके समूह ) को कर्कोटक नामके सर्पने आगे होकर आकृष्ट किया, उस नागसेनाका अश्वतर नामके सर्पने अनुगमन किया ) [ पातालवासी सर्पराज वासुकि भी 'कर्कोटक, कम्बल, अश्वतर' नामक सोँकी सेनाओं के साथ कुण्डिनपुरी में पहुँचे ] // 8 // . आगच्छदुर्वीन्द्रचमूसमुत्थैर्भूरेणुभिः पाण्डुरिता मुखश्रीः। विस्पष्टमाचष्ट दिशां जनेषु रूपं पतित्यागदशानुरूपम् // 9 // आगच्छदिति / आगच्छतामुन्द्रिाणां राज्ञाञ्चमूसमुत्थैर्भूरेणुभिः पाण्डुरिता धूसरीकृता दिशां मुखश्रीः पतित्यागदशानुरूपं भर्तृप्रवासावस्थोचितरूपं प्रोषिते मलिना कृशेत्युक्ताकारं जनेषु विषये विस्पष्टमाचष्ट जनेभ्यः प्रकटीचकारेत्यर्थः / अत्रा. न्यधर्मस्यान्यत्रासम्भवादिशां प्रोषितभर्तृकारूपमिव रूपमिति सादृश्याक्षेपादसंभव. द्वस्तुसम्बन्धाख्यो निदर्शनाभेदः हरिद्वधूनामिति देशान्तरपाठे रूपकं व्यक्तम् // 9 // ( कुण्डिनपुरीको ) आते हुए भूपालोंकी सेनासे उड़ी हुई धूलियोंसे पाण्डुरित दिशाओं के मुखकी शोभाने (परदेशमें जाने के कारण अथवा सपत्नीको वरण करने के कारण) पतियों के त्यागकी दशाके अनुकूल अवस्था अर्थात् मलिनता युक्त अवस्थाको लोगों में स्पष्ट रूपसे कह दिया अर्थात् प्रकट कर दिया / [ पतियोंको परदेशके लिये प्रस्थान करने पर या सपत्नी लाने के लिये प्रस्थान करनेपर स्त्रियों का मुख मलिन होना ठीक ही है / कुण्डिनपुरीको आनेवाले राजाओंकी सेनाओंकी धूलिसे सब दिशाएं मलिन हो गयीं ] // 9 // आखण्डलो दंडधरः कृशानुः पाशीति नाथैः ककुभां चतुर्भिः। . भैम्येव बद्ध्वा स्वगुणेन कृष्टैर्यये तदुद्वाहरसान्न शेषैः // 10 // अथेन्द्रादिलोकपालवृत्तान्तमाह-आखण्डल इति / आखण्डलः इन्द्रः, दण्डधरो यमः, कृशानुरग्निः, पाशी वरुण इति प्रसिद्धैः चतुर्भिः ककुभां नाथैः भैम्याः स्वगुणेन 1. 'कृष्टैः स्वयंवरे तत्र गतं न शेषैः' इति पाठान्तरम् /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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