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________________ 412 नैषधमहाकाव्यम् / पुनरप्यन्योऽन्यानुरागमेवाह-यदिति / पञ्चबाणो विषमेषुः द्वावपि भैमीनलौ अक्रममविद्यमानक्रमं युगपदित्यर्थः / विक्रमेण या शक्तिस्तस्याः साग्यात् साग्यमा. लम्ब्य स्यब्लोपे पञ्चमी / उपाचरत् उपाचचार विषमैः बाणैयुगपत् उभावप्यवैषम्येण प्रहृतवानिति / अमुष्य समोपचरणस्य अर्धार्धशो विभागभाजो न भवन्तीति तथोक्तः विषमसङ्ख्यैः अशक्यसमविभागरित्यर्थः। बाणैः शरः कर्तृभिः पञ्चभिरिति भावः / वैमत्यमसम्मतिः कस्मात् कथं न चक्रे कृतं महचित्रमिति भावः / अत्र विषमैयुगपदु. भयत्र समप्रहारविरोधस्य स्मरमहिम्ना समाधानाद्विरोधाभासोऽलङ्कारः // 4 // पञ्चबाण (पांच बाणोंवाला अर्थात् कामदेव ) पराक्रमसे उत्साहका अवलम्बनकर ( अथवा-मानसिक उत्साहरूप बलके सामर्थ्य या समानतासे, अथवा-पक्षियों के आक्रमणमें जो शक्ति उसकी समानतासे अर्थात् जिस प्रकार कबूतर एक साथ खलिहान आदिमें उतरते और दानोंको चूँगते हैं उसकी समानतासे, अथवा-पक्षियोंकी बुद्धिके अर्थात् एक साथ दाना चुंगना उसकी समानतासे, अथवा-विक्रमतुल्य नल और शक्ति की तुल्यतासे, अथवा-विक्रमरूप नल और शक्तिरूपा दमयन्तीकी समानतासे ) एक साथ दोनों ( दमयन्ती-नल ) को प्रहृत किया, (अथवा-नल-दमयन्तीको विक्रम-शक्तितुल्य अर्थ में पूजित या सत्कृत किया ); वह (प्रहार करना) इस (कामदेव ) का पांच बाण होनेसे आधा विभाग करने के अयोग्य बाणोंसे विमतिभाव (विरुद्धभाव ) क्यों नहीं किया ? (यह आश्चर्य है ) [ यदि पञ्चबाण कामदेव दमयन्ती और नलको एक साथ बाणोंसे आहत नहीं करके आगे पीछे आहत करता तो जिसे पहले आहत करता उसमें अधिक अनुराग तथा जिसे बादमें आहत करता उसमें कम अनुराग सिद्ध होता; इस प्रकार दोनोंका परस्परमें समान अनुराग नहीं प्रतीत होता / इससे कामदेवने एक साथ ही दोनोंको आहतकर परस्पर में दोनों का समान अनुराग है, यह सिद्ध किया है / इसी प्रकार अपने बाणोंकी संख्या पांच होनेसे विना आधा-आधा विभाग किये अर्थात् विना ढाई-ढाई वाण किये दोनोंको पूरे पांच-पांच बाणोंसे आहत कर कामदेवने उनका परस्परमें समान अनुराग होना सिद्ध किया / यदि कामदेव पांच बाण होनेसे उनका ठीक आधा-आधा विभाग नहीं हो सकता था और जो बाण आधा होता वह खण्डित होनेसे निष्क्रिय हो जाता और यदि सब बाणो को आधा 2 विभाग करते तो सबके सब निष्क्रिय हो जाते और प्रत्येक बाणों के मादन आदि पृथक् धर्म होनेसे जिस बाणको आधा 2 करता तो उसका गुण नष्ट हो जाता या बाणों में भी परस्पर वैमत्य ( विरोध ) होता कि मुझे क्यों दो टुकड़ा किया दूसरे को क्यों नहीं किया तथा यदि नल या दमयन्तीमें से किसीको दो और किसीको तीन बाणों से आहत करता तब भी कम दो बाणसे जो आहत होता उसमें कम अनुराग तथा तीन बाणोंसे जो आहत होता उसमें अधिक अनुराग सिद्ध होता, अतः ऐसा न्यूनाधिक बाणोंसे प्रहार न करके दोनों को समान बाणोंसे हो तथा एक साथ ही कामदेवने जो प्रहार किया, यह आश्चर्य है] // 4 //
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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