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________________ सप्तमः सर्गः। शूर रतिपति ( कामदेव ) कटि, ललाट तथा मस्तकमें अलग-अलग (क्रमशः) स्थित इस दमयन्तीके रोमावली, भ्र तथा पुष्परूप अपने प्रत्यञ्चा (धनुष की डोरी) रूप धनुष और बाणोंसे (तीनों लोक का) विजयी हो रहा है, यह आश्चर्य है। [अच्छासे अच्छा भी दूसरा कोई योद्धा प्रत्यञ्चा, धनुष तथा बाण-तीनों को एकत्र करके ही किसीको जीत सकता है, किन्तु यह कामदेवरूप योद्धाकी प्रत्यञ्चा दमयन्तीकी कटिमें रोमावली है, धनुष ललाटमें भ्र. है तथा बाण मस्तकमें पुष्प है। इस प्रकार तीनों अलग-अलग हैं, तथापि बह कामदेव त्रैलोम्य-विजयी हो रहा है, यह आश्चर्य है ] / / 86 // अस्याः खलु ग्रन्थिनिबद्धकेशमल्लीकदम्बप्रतिविम्बवेशात् / स्मरप्रशस्तीरजताक्षरेयं पृष्ठस्थली हाटकपट्टिकायाम् / / 8 // अस्या इति / अस्याः भैम्याः पृष्ठस्थली कायपश्चाद्भागः / 'पृष्ठं तु घरमं तनो' २त्यमरः / सैव हाटकपट्टिका हेमफलकं तस्यां ग्रन्थिना बन्धेन निबद्धेषु संयतेषु केशेषु यन्मल्लीकदम्ब मल्लीकुसुमनिकुरग्बं तत्प्रतिबिम्बस्य वेशात् प्रवेशाद्धेतोः इयं रजतारा रजतमयवर्णा स्मरप्रशस्तिः स्मरवर्णना खलु नैर्मल्यात् पृष्ठफलप्रतिबि. म्बितानि धम्मिल्लमल्लिकाकुसुमानि हेमफलकविन्यस्ता राजती मदनप्रशस्तिवर्णावलीव भातीत्युत्प्रेक्षा // 87 // इस दमयन्तीकी पीठरूपी सुवर्णपट्टिका ( सुनहला बोर्ड ) पर, गांठों में बाँधे अर्थात् गुथे हुए केशोंमें मल्लिकाके पुष्पोंके समूहके प्रतिबिम्बित होनेके बहानेसे रुपहले अक्षरोंमें काम. देवकी प्रशस्ति लिखी गयी है। [ दमयन्तीकी पीठ सुवर्णके समान गौर वर्णवाली तथा बोर्ड के समान समतल हैं, उसमें केशोंमें गुथे हुए मल्लिकाके पुष्प-समूह प्रतिबिम्बित हो रहे हैं, ये कामदेवकी रजत-वर्णोंसे लिखित प्रशस्तिके समान मालूम पड़ते हैं / महापुरुषोंकी प्रशस्ति सुवर्णपटपर रजताक्षरोंमें लिखी जाती है ] / / 87 // चक्रेण विश्वं यदि मत्स्यकेतुः पितुर्जितं वीक्ष्य सुदर्शनेन / जगजिगोषत्यमुना नितम्बद्वयेन किं दुर्लभदशनेन / / 88|| चक्रेणेति / मत्स्यकेतुः कामः सुदर्शनेन सुदर्शनाख्येन सुलभदर्शनेन च पितुः विष्णोः चक्रेण विश्वं जितं वीक्ष्य यदि वीक्ष्य किल अमुना दुर्लभदर्शनेन नितम्बद्वयेन कटीफलकद्वयेनेव चक्रेण जगजिगीपति जेतुमिच्छति किमित्युत्प्रेक्षा // मकरध्वज कामदेव पिता ( श्रीकृष्ण भगवान् ) के सुदर्शन ( सुदर्शन नामक, पक्षा०देखने में सुन्दर ) चक्रसे संसारको यदि ( पाठा०-युद्ध में ) जीता गया देखकर घुलभ दर्शन 1. "-कदम्बम्" इति पाठान्तरम् / 2. "-युधि" इति पाठान्तरम् / 3. "नितम्बमयेन" इति पाठान्तरम् /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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