SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 457
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नैषधमहाकाम्यम् / इस दमयन्तीके हाथको छूने ( समानता करने) के महालोमी पल्लवने निश्चय ही बालत्व (बचपन अर्थात् नवीनता) को प्राप्त किया (क्योंकि लाल वर्ण होनेसे नवीन पल्लव ही हाथकी समानता कर सकता है / अथवा-चालव अर्थात् मूर्खताको प्राप्त किया ( मूर्ख बन गया, क्योंकि जो पल्लव (पद् + लव = पल्लव ) लर्थात् दमयन्तीके पैरके लेश ( शुद्रतम भाग ) के बरावर है, वह ( दमयन्तीके परके क्षुद्रतम भागके समान वस्तु ) उसके हाथकी समानता करके मूर्ख ही कहलायेगी। और फिर (दमयन्तीके ) अधर की समानता का अभिमान करनेवाला वह पल्लव प्रवाल (अत्यधिक नवीन अर्थात अतिशय लाल वर्णवाला) होने के लिये अत्यन्त नया क्यों नहीं होगा। (क्योंकि अतिशय नवनीत्व(नया होकर) बहुत लालिमा प्राप्त किये विना वह अधर की समानता नहा कर सकता है) अथवा-दमयन्ती के अधर की समानता का अभिमानी वह पल्लव प्रवाल (प्र+वालप्रवाल) अर्थात् अधिक मूर्ख क्यों नहीं होगा ? अर्थात् अवश्य होगा। [जो पल्लव ( दमयन्तीके पैरके क्षुद्रतम भागके समान होनेसे) पहले हाथकी समानता करके मूर्ख बन चुका है, वही पल्लव फिर हाथसे भी श्रेष्ठ अधरकी समानता करने का अभिमान (इच्छा मात्र ही नहीं, किन्तु अभिमान भो) करे वह महामूर्ख क्यों नहीं होगा ! अर्थात् अवश्य होगा। लोकमें भी होनतम व्यक्ति मध्यम व्यक्ति की समानता करने की इच्छा करने पर मूर्ख तथा अत्युत्तम व्यक्तिको समान होने का अमि. मान करनेपर महामूर्ख समझा जाता है / दमयन्तीके हाथ ही पल्लवसे अधिक सुन्दर तथा रक्त वर्ण है तो फिर अधर का क्या कहना है ? अर्थात् वह तो पल्लवसे अधिक सुन्दर एवं रकवर्ण है ही] // 71 // अस्यैव सगोय भवत्करस्य सरोजसृष्टिमम हस्तलेखः / इत्याह घाता हरिणेक्षणायां किं हस्तलेखीकृतया तयास्याम् // 79 // अस्येति / अस्य भवरकरस्य भवत्याः पाणेः सर्गाचैव सरोजराष्टिः मम हस्तलेखो रेखाभ्यास इति विधाता अस्यां हरिणेषणायां भैम्यां हस्तलेखीकृतया अभ्यासीक. तया हस्तकृतपमरेखीकृतया च तया सरोजसध्या करणेनाह किम् ? भैम्यै कथयति किमित्युत्प्रेक्षा // 72 // "इस तुम्हारे हाथके बनाने के लिये ही कमलकी रचना मेरा हस्तलेख अर्थात् प्रथम रेखाभ्यास है" इस प्रकार ब्रह्मा मृगनयनी इस दमयन्तीमें हाथमें रेखा को गयो ( या हाथमें लिखी गयी ) उस कमल-रचना द्वारा कहते हैं क्या ? / [ दमयन्तोके हाथमें कमलाकार रेखा (चिह्न) है, अतः मालूम पड़ता है कि ब्रह्मा इस दमयन्तीके हाथ में कमलरेखा बनाकर 'हमने तुम्हारे हाथकी रचना करने के लिये ही अभ्यासार्थ रेखारूपसे हाथमें अङ्कित कमलकी सृष्टि की है' यह कह रहे हैं। दूसरा कोई भी शिल्पो उत्तम वस्तु बनाने के पले रेखा आदि बनाकर अभ्यास कर लेता है / दमयन्तीके हाथ कमलसे भी सुन्दर तथा कमल रेखाङ्कित होनेसे शुभ लक्षण सम्पन्न हैं ] // 72 //
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy