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________________ 386 नैषधमहाकाव्यम् / तीन रेखा करनेपर स्थानके चार माग हो जाते है / दमयन्ती कविता सङ्गीत आदि पण्डिता तथा कण्ठमें तीन रेखा होने से कम्बुकण्ठी (शक्षके समान कण्ठवाली-अतएव शुम लक्षणयुक्त ) है ] ! 67 // बाहू प्रियाया जयतां मृणालं द्वन्द्वे जयो नाम न विस्मयोऽस्मिन् / उच्चस्तु तच्चित्रममुष्य भग्नस्यालोक्यते निर्व्यथनं यदन्तः // 68 / / बाहू इति / प्रियाया बाहू मृणालं अयतां नाम / जयतेोटि तसस्तामादेशः / अस्मिन् द्वन्द्वे युग्मे कलहे च / 'द्वन्द्वकलहयुम्मयोः' इत्यमरः / जयो नाम विस्मयोsद्भुतो न, किंतु भग्नस्य जितस्यामुष्य मृणालस्य अन्तर्गर्भ अन्तःकरणे च व्यथनस्याभावो निय॑थनमव्यथं छिद्रं च 'छिदं नियनं रोकम्' इत्यमरः / अर्थाभावे अन्य. यीभावः / यद्विलोक्यते तदुच्चमहञ्चित्रं भग्नोऽप्यन्यथ इति विरोधात् / छिद्रं विलोक्यत इत्यविरोधः / मृणालस्यान्तश्चिद्रत्वात्। विरोधाभासोऽलङ्कारः // 68 // प्रिया ( दमयन्ती ) के दोनों बाहु कमलनालको जीत ले, इस द्वन्द (बाहुओं, पक्षा०युद्ध ) में विजय होना आश्चर्य नहीं है। किन्तु यह बड़ा आश्चर्य है कि भग्न हुए (प्रियाके बाहुद्वयसे पराजित हुए; पक्षा०-तोड़े गये) इस (कमलनाल ) का हृदय (पक्षा०-भीतरी माग) व्यथारहित ( पक्षा०-छिद्रयुक्त) देखा जाता है। [ दमयन्ती के दो बाहु एक कमल. नालको जीत लें, इसमें आश्चर्य नहीं, क्योंकि दोसे एकका पराजित होना स्वाभाविक ही है अथवा-दमयन्तीके दो बाहु युद्ध में कमलनालको बीत लें, इसमें आश्चर्य नहीं, क्योंकि युद्ध में एक पक्षका पराजित होता स्वाभाविक ही है। किन्तु पराजित व्यक्तिका हृदय व्यथित हो जाता है, पर कमलनालका हृदय व्यथित अर्थात् व्यथायुक्त नहीं दिखलाई पड़ता यह बड़ा आश्चर्य है ( यहाँ विरोधालङ्कार है) उसका परिहार यह है कि तोड़े हुए कमल बालका भीतरी भाग छिद्रयुक्त दिखलायी पड़ता है। दमयन्तीके बाहु कमलनालसे भी मुन्दर हैं ] // 6 // अजीयतावतशुभंयुनाभ्यां दोभ्या मृणालं किमु कोमलाभ्याम् / निस्सूत्रमास्ते घनपङ्कमृत्सु मूर्तासु नाकीर्तिषु तन्निमग्नम् / / 66 / अजीयतेति / आवतोऽम्भसा भ्रमः स इव शुभंयुः शुभवती नाभिर्यस्याः सा। तस्या भैम्याः / 'शुभंयुस्तु शुभान्वितः' इत्यमरः / “अहंशुभमोर्यस्' इति शुभमिति मकारान्ताव्ययान्मत्वर्थीयो युस्प्रत्ययः / कोमलाभ्यां मृदुभ्यां दोभ्यां भुजाभ्यां मृणालमजीयत किमु मार्दवगुणेन जितं किमित्युत्प्रेचा / कुतः, धनासु सान्द्रासु पङ्करूपासु मृत्स्वेव मूर्तासु मूर्तिमतीष्वकीर्तिषु तन्मणालं निमग्नं निस्सूत्रं निर्व्यवस्थं निर्मर्यादं नास्ते किं काकुः / अपराजितवे कथमकीर्तिपकपात इति भावः // 69 // आवते (पानीका भौंर) के समान शुभलक्षणयुक्त नाभिवाली ( दमयन्ती ) के कामल दोनों बाहुओंने कमलनालको जीत लिया है क्या ? (क्योंकि ) वह (कमलनाल) सूत्ररहित
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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