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________________ 260 नैषधमहाकाव्यम् / की हुई पैरों में प्रणाम करती हुई दमयन्तीको कामदेव-पाणप्रहारजन्य मानसिक व्यथामें मग्न अर्थात् अत्यन्त कामपीडित समझ लिया, क्योंकि चतुरळोग दूसरों के माशयको शीघ्र जाननेवाले होते हैं / [अन्तःपुरमें राजाका भाना सुनकर समय सखियोंने या कुछ स्वस्थ हुई स्वयं दमयन्तीने ही कमल, मृणाल, विस भादि विरह-ताप-शान्तिकारक चिह्नोंको दूर कर दिया तब दमयन्तीने जाकर पिताके चरणों पर गिरकर प्रणाम किया। विरहचिह्नों को दूरकर आयी हुई भी पुत्रीको चतुर राजा भीमने कामबाणसे पीड़ित समझ लिया। यहां दमयन्ती कामपीडासे इतनी क्षीण हो गयी थी कि विरहचिह को दूर हटाकर भी समीप में यो विनम्र दमयन्तीको कामपीडित समझनेमें चतुर राजाको कुछ विलम्प नहीं लगा] // व्यतरदथ पिताशिषं सुतायै नतशिरसे मुहुरुन्नमय्य मौलिम् / 'दयितमभिमतं स्वयंवरे त्वं गुणमयमाप्नुहि वासरैः कियद्भिः // 116 / / ग्यतरदिति / अथ पिता भीमः, नतशिरसे लजानतमुखायै सुतायै दमयनस्यै, मोलि मुख मुखमय्य, हे वरसे ! कियद्भिः कतिपयैरेष वासरैः स्वयंवरे स्वं गुणमयं गुणाढ्यमभिमतं दयितमाप्नुहोत्याशिषं मुहुर्यतरत् // 119 // इसके (चरणों में दमयन्तीके प्रणाम करनेके ) बाद पिता (राजा मीम ) ने नतमस्तक कन्या के लिये प्रेमाधिक्य से झट (पादप्रणत उसके) मस्तक को उठाकर भाशीर्वाद दिया कि-'स्वयंवर में ( अथवा हे स्वयंवरे ! पति को स्वयं वरण अर्थात् चुनकर स्वीकार करने. वाली!) तुम कुछ ( थोड़े) ही दिनों में बहुत गुणी अपने अभिलषित प्रियतम प्राप्त करो। [इस पद्य में 'स्वयंवरे. अमिमतम्, कियद्भिः वासरः पदों से राजा भीम ने पुत्री दमयन्तीकी कामपोडितावस्था जानकर आश्वासन दिया कि 'तुम्हें अभिलषित प्रियतम पति शीघ्र ही पाने के लिये मेरी परतन्त्रता नहीं रहेगी, अपितु तुम स्वेच्छानुसार पति को स्वयंवर में स्वयं ही स्वीकार करने में स्वतन्त्र रहोगी ] // 119 // तदनु स तनुजासखीरवादीत्तुहिनऋतौ गत एव हीदृशीनाम् | कुसुममपि शरायते शरीरे तदुचितमाचरतोपचारमस्याम // 120 // तदन्विति / तदनु आशीर्वादानन्तरम् 'अनुर्लपणे' इति कर्मप्रवचनीयसंज्ञा / स नृपस्तनुजासखीः सुतावयस्याः भवादीदूचे / किं तत्तदाह-हि यस्मात् , तुहिन. ऋतौ शिशिरकाले, 'ऋत्यकः' इति प्रकृतिभावः / गते निर्गत एव, बसन्ते पुष्पपरिणामात्तापस्य दुःसहत्वाच्चेति भावः। ईदृशीनां कोमलाङ्गीनां यौवनप्रविष्टानां शरीरे कुसुममपि शरायते शरवदाचरति, तद्वद दुःसहं भवति / एकत्र गात्रमार्दवादन्यत्र मदनबाणत्वाचेति भावः। तत्तस्मादस्यां कोमकाङ्गयां युवस्यांच, उचितं योग्यमु. पचारं प्रतीकारमाचरत // 120 // उसके ( दमयन्तीको आशीर्वादरूप आश्वासन देने के ) बाद उस (राजा भीम ) ने
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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