SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 258 नैषधमहाकाव्यम् / भययुक्त हो कन्या (दमयन्ती) के महलमें पहुंच गये / [ पुत्रीकी मूर्छाका समाचार सुनकर पिताका मययुक्त होना एवं तरकाल ही उसके महरूमें पहुंचना स्वाभाविक ही है ] // 115 // कन्यान्तः पुरबोधनाय यदधीकारान्न दोषा नृपं द्वौ मन्त्रिप्रवरश्च तुल्यमगदवारश्च तामूचतुः / देवाकर्णय सुश्रुतेन चरकस्योक्तेन जानेऽखिलं स्यादस्या नलदं विना न दलने तापस्य कोऽपि क्षमः // कम्येति / कन्यान्तःपुरस्य बोधनाय योगक्षेमानुसन्धानाय, यदधीकाराययो. मन्त्रिवैद्ययोरधीकाराधियोगात् / 'उपसर्गस्य अभ्यमनुष्ये बहुलम्' इति दीर्घः / दोषाः परपुरुषप्रवेशादयो वातादयश्च, न सन्तीति शेषः। अस्तिर्भवतिपरोऽप्रयुज्य. मानोऽप्यस्तीति वचनात् / ती मन्त्रिप्रवरण अगदमपरोगं करोतीत्यगदारो वैधश्च / 'रोगहार्यगदारो भिषग्वैश्चिकित्सक'इत्यमरः / 'कर्मण्यण 'कारे सत्याग दस्य' इति मुमागमः। हो नृपं तुख्यमेकवाक्यमूचतः / देव राजन् ! आकर्णय सुश्र. तेन सम्यक्तेन, चर एव चरको गूढचारः, तस्योक्तेन वाक्येन। अन्यत्र सुश्रतेन चरकस्योक्तेन चरकाचार्यप्रणीतग्रन्थेन, मखिलं तापनिदानं जाने। अस्यास्तापस्य बलने निवर्तने, नलं राजानं ददातीति नलद, तरसंघटक विना।'ातोऽनुपसर्गे का। अन्यत्र, नलवमुशीरं विना / 'मूलेऽस्योशीरमनियाम / अभयं नलदं सेण्यम्' इत्य. मरः / कोऽपि न मो न स्यात् / 'शकि लि' इति शक्याथै लिछ। अत्र योरपि नलइयोः प्रकृतस्वात् केवलप्रकृतश्लेषोऽलङ्कारः॥१६॥ जिस (प्रधान मन्त्री)के अधिकारसे कन्याके अन्तःपुरके योगक्षेममें बापाके लिये कोई दोष (परपुरुषसंसर्गजन्य व्यभिचार आदि) समर्थ नहीं होते राजवैद्यपक्षमें-जिस (राजवैद्य)के मषिकार अर्थात निरन्तर देखरेख रखनेसे कन्याके शरीरको रक्षित करने (में बाधा) के लिये कोई दोष (वात, पित्तादि ) समर्थ नहीं होते; उन दोनों ( मुख्यमन्त्री तथा राबवैद्य ) ने समान ( परस्पर अविरुद्ध ) वचन कहे / (प्रधान मन्त्रीने कहा कि सरकार ! सुनिये, अच्छी तरह सुने हुए दूतके कहनेसे मैं सब जानता हूं कि-) नलके लिये देने (नछके साथ •विवाह करने ) के अतिरिक्त इस दमयन्तीके सन्तापकी शान्तिके लिये कोई भी ( अन्य रामादि ) समर्थ नहीं है, राजवैद्यके पक्षमें वैद्यने कहा कि-'हे सरकार ! सुश्रुत तथा चरक (नामक चिकित्साशास्त्रके रचयिता प्रधान दो आचार्यों) के कहनेसे मैं सब जानता हूं कि नल अर्थात् खश देने के अलावे इसके तापकी शान्तिके लिये अन्य कोई (काथ, रस, मस्म आदि औषध) समर्थ नहीं है / (अथवा-राजा 'नल' को प्राप्तिके पहले 'खश' देनेके अतिरिक्त इसके तापको शान्ति के लिए ब्रह्मा भी समर्थ नहीं है, तब दूसरेकी बात ही क्या है ? अतः शीघ्र ही राजा नलके साथ विवाह करनेका तथा उसके पहले खशदारा उपचार करनेका प्रबन्ध होना 1. 'बाघनाय' इति पाठान्तरम् /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy