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________________ भूमिका विषधराज नलसे तुम्हारे सौन्दर्यका वर्णन कर तुम्हारा पति होनेके लिए निवेदन करूंगा। यह सुन दमयन्तीके हाथसे मुक्ति प्राप्त कर इंस निषधदेशमें जाकर सरोवरपर स्थित नलके पास पहुंचा। वहांपर भी नलने उसे अपना दुपट्टा फेंककर पकड़ा, तब उस इंसने कहा कि पतिरूपमें तुम्हें चाहनेवाली मीमकुमारी परमसुन्दरी दमयन्तीका सन्देश लेकर मैं भाया हूँ, अतः तुम मुझे छोड़ दो। हर्षप्रद यह हंसोक वचन सुनकर नसे मुक्त इंस पुनः दमयन्तीके पास जाकर नलसे दी गई स्वीकृतिका सुसंवाद कहकर अभिमत स्थानको चला गया और दमयन्तीने माताके दारा यह समाचार पिताको सुनाया। तदनुसार पिता मीमने भो स्वयंवरके निमित्त राजाओं के पास निमन्त्रणपत्र भेजे। नारदसे दमयन्तीके लोकोत्तर सौन्दर्य तथा स्वयंवरका समाचार पाकर इन्द्र, अग्नि, वरुण, यम तथा वाय, ये पांच लोकपाल नाके समीप गये और अदृश्य होनेकी शक्ति देकर उनको दूत बनाकर दमयन्तीके पास भेना। नलने मी दमयन्तीके पास जाकर देवोंका सन्देश कहते हुए उक्त पांच देवों में से किसी एक देवको पतिरूपमें वरण करनेके लिए कहा, किन्तु दमयन्तीका नलको ही वरण करनेका निर्णय मालूम कर नलने अपना परिचय दिया और उन पांच देवोंके पास वापस भाकर यथातथा सब बातोंको कह दिया। उनके इस वधनारहित सत्यवचनसे प्रसन्न देवोंने अपनेको नलका वशवती होनेका वरदान दिया। तदनन्तर नलके निषध देशको वापस लौटनेपर वे इन्द्रादि पाँचों लोकपाल नरूका रूप धारण कर स्वयंवर में पहुंचे। इधर अपने भाईसे स्वयंवरागत राजामों का परिचय पाकर क्रमशः उन्हें छोड़ती हुई दमयन्तीने मागे जाकर एक साथ बैठे हुए छः नकोंको देखा तथा उन देवताओंको स्तुतिसे प्रसन्न कर नलके गले में वरणमाला पहना दी। दमयन्तीके साथ विधिवत विवाह संस्कार सम्पन्न होनेपर नल वापर एक सप्ताह ठहरनेके बाद दमयन्तीको साथ लेकर अपने देशको लौटे। पर दमयन्ती-स्वयंवर में द्वापर के साथ आता हुआ कलि देवोंसे नलके दमयन्तीदारा वरे जानेका समाचार सुन उन्हें परस्पर वियुक्त करनेकी प्रतिक्षा कर नलकी राजधानीमें पहुंचा और नलके छिद्रान्वेषण करता हुमा रहने लगा। बारह वर्षके उपरान्त मद्यपान करनेके कारण बिना सन्ध्योपासन तथा पादप्रक्षालन किये ही सोए हुए नलके शरीर में कलिने प्रवेश किया, जिसके प्रभावसे नल दुराचारमें प्रवृत्त रहने लगे। इत्यादि / इस प्रकार महामारत तथा कथासरित्सागरके कथाशके साथ प्रकृत नैषधचरितके कांशका सामजस्य करनेपर यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रीहर्षने महाभारतके आधारपर ही इस महाकाव्यको रचना की है। 1. कथासरित्सागरके नवम 'अलकारवती' लम्बकके छठे तरङ्गमें लोक 237-416 /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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