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________________ नैषधमहाकाव्यम् / कान्ति-प्रवाहसे अगाधताको प्राप्त भी उस ( दमयन्ती) के शरीर में बढ़ते ( क्रीड़ा करते हुए कामदेव तथा यौवन के लिए ( दमयन्तीके विशाल ) दोनों स्तन मानों तैरने के घड़े हो रहे हैं। [ ययपि अगाध जल प्रवाहमें कीड़ा करना ठीक नहीं है, तथापि जलक्रीड़ा करते हुए कामदेव तथा यौवन के लिए दमयन्तीके विशाल दोनों स्तन तैरने के घड़े से हो रहे हैं ] // 11 // कलसे निजहेतुदण्डजः किमु चक्रभ्रमकारितागुणः ? / स तदुचकुचौ भवन प्रभाझरचक्रभ्रममातनोति यत् / / 32 // कलस इति / निजहेतुएण्डजः स्वनिमित्तकारणजन्यः चक्रभ्रमकारिता कुलाल. भाण्डभ्रमणजनकत्वं सव गुणो धर्मो रूपादिश्व, 'गुणः प्रधाने रूपादावित्यमरः। स। कलसे किमु ? दण्डकार्य कलसे संक्रान्तः किमु ? इत्यर्थः, कुतः यद्यस्मात् स कलसः तस्या दमयन्या उच्चकुचो भवन् तस्कुचारममा परिणतः सन् प्रमाझरे लावण्यप्रवाहे चक्रम्रमं चक्रवाकभ्रान्ति कुलालदण्डभ्रमणं चातनोति, 'चको गणे चक्रवाके चक्रं सैन्यस्थानयोः / ग्रामजाले कुलालस्य भाण्डे राष्ट्रासयोरपि' इस्युभय. प्रापि विश्वः अत्र 'समवायिकारणगुणा रूपादयः कार्ये संक्रामन्ति न निमित्तगुणा' इति तार्किकाणां समये स्थिते गुण इति चक्रभ्रम इति चोभयनापि वाच्यातीय. मानयोरभेदाभ्यवसाय एव 'स तदुधकुचो भवधि'ति कुचकलसयोरभेदातिशयो. क्युस्थापितझरचक्रभ्रमात्मक क्रियानिमित्ता कुचात्मनि कलसे कार्य चक्रमकारिता. लक्षणनिमित्तकारणगुणसंक्रमलक्षणेनोस्प्रेति सङक्षेपः। तार्किकसमये विरोधात् विरोधाभासोऽलकार इति केश्चिदुक्तम्, तदेतदस्यन्ताश्रुतचरमलद्वारपारहचानः शृण्वन्त // 32 // (कुम्हारके गकको) घुमानेका गुण कलससे अपने निमित्त कारण दण्डसे उत्पन्न हुमा हैं क्या ? क्योंकि वह कलस उस (दमयन्ती) का विशाल स्तनद्वय होता हुआ प्रभा प्रवाहसमूह (या-प्रमा-प्रवाहरूप चाक, या-प्रमा-प्रवाह से चकवा पक्षी ) का भ्रम (भ्रान्ति, पक्षा०-भ्रमण ) को उत्पन्न करता है। [ समवायिकारण, असमवायिकारण तथा निमित्त कारण-ये तीन कारण नैयायिकों ने माने हैं, इनमें समवायिकारणका गुण कार्य में आता है, यथा मृत्पिण्डका गुण कलशमें / किन्तु निमित्त कारणका गुण कार्य में नहीं माता, यथा-दण्ड-चक्र-चीवरादिका गुण कलसरूप कार्यमें नहीं आता। परन्तु यहाँ उलटा ही देखा जाता है, क्योंकि कुम्हारके चाकके घुमानेका अपने निमित्त कारणभूत दण्डका गुण कार्यरूप कलसमें भा गया है, यह इस कारणसे ज्ञान होता है कि वह कलस दमयन्तीके विशाल स्तनद्वय होकर प्रमा समूहसे कुम्हारके चाकको भ्रम कराता है अर्थात् दमयन्तीके कलसतुल्य विशाल स्तनोंको देखकर कान्ति-समूहसे मनुष्य नीचे ऊपर घूमने लगता है; अथवा-वह प्रमा-प्रवाहमें चकवाका भ्रम कराता है अर्थात् उक्तरूप स्तनोंको देखकर के चकवा पक्षी प्रवाहमें घूम रहे हैं ऐसा प्रतीत होने लगता है; और प्रवाहमें चक्रवाकर
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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