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________________ वसत्तरमाऊंयनायपरमेसराएकज़ारसूरुषसंवतलीधे.यो। विसगणधरासाहरजानिामाaeजारळसेंसाधची एकलाषा नगन्यासीहारश्रावक विएशनाघएकासिहजारश्राविका माजीस धनुषदेहमान कंचनवर्णसरीरबागलंबन यांचाएकहजारवाई विचरताश्रीसिदाचनमापधास्था अनिकनवाणि श्रीसिहान लमहरातमधी तिहाथाविहारकरता श्रीसमेतसिधेरे एकहजारसुरुष संघातं मासभलिबेदिसिधयवस्था नमोस्त बाऊबलगीरी मुक्कर रामिनयगिरीननमस्कारहयो। श्री श्री श्री श्री मूल पाठ हवे सत्तरमा कुंथनाथ परमेसर। एक हजार पुरुष सुं व्रत लीधुः। पांत्रिस गणधर, साह्र हजार मुंनि, साठ्ठ हजार छसें साधवी, एक लाख अगन्यासी हजार श्रावक, त्रिस लाख एकासि हजार श्राविका। पांत्रीस धनूष देहमान, कंचन वर्ण सरीर, छांग लंछन, पांचाणुं हजार वर्ष आउं। विचरतां श्री सिद्धाचलजीइं पधारया। अनेक भव प्राणिनें श्रीसिद्धाचल महात्तम वर्णवी तिहांथी विहार करतां श्री समेतसिखरें एक हजार पुरष संघाते मास भक्ति छेदि सिधपदनें वरया। नमोस्तु बाहुबलगीरीः मुक्तगीरी, निलयगिरीने नमस्कार हज्यो।17। श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः। हिन्दी अनुवाद 17. कुंथुनाथजी आपने 1,000 पुरुषों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की थी। आपके परिवार में स्वयम्भू (शम्ब) प्रमुख 35 गणधर थे। 60,000 साधु, 60,600 साध्वियां, 1.79,000 श्रावक और 3.81.000 श्राविकाएं थीं। 66 पटदर्शन
SR No.032780
Book TitlePat Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana K Sheth, Nalini Balbir
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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