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________________ पुजानकिकरें तेनामनोविनिमपुरंतदाकानयी वनतनाम सिम सावननिष मिश्रीशांतिमापरमेसश्या सिग्द्यामधि नीसिवानजीनोमरिमासोन्नतिअनेकन्यजीवपत्तिबोध कामी काश्विलेश्णसाकरी घयाजवसिधावस्या नीशान्ति प्राथ विहारकरना समसिघरेनवस्पैमुनिसहितानासन्नभि करी सिपदनेचस्यानमोस्तविलगिरीपुकरीक गिनी नमस्काररोजगा॥२५॥ मूल पाठ हवे सोलमाः श्री शांतिनाथ प्रभुजी। एक हजार पुरुषसुं दिक्षा। छत्रीस गणधर, बासहि हजार मुनि, बासठ्ठि हजार छसें साधवी, बे लाख नेउ हजार श्रावक, त्रिण लाख त्राणुं हजार श्राविका। च्यालीस धनूष देहः, लाख वरसनूं आउं, कंचन वर्ण, मृग लंछन। ते श्री शां(ति) परमेसरजी कुरुदेशनें विषं, हस्तिनागपुरीना कुसुम उद्यान वनने विषे आवी समोसरया। धर्मदेसना कही। चक्रायुध राजाने वधामणी आवी। वधामणीयाने पचंग पसाय करी चतुरंगणी सेना सजीनें, परमेसरजीने वांदवा आव्या। त्रिप्रदक्षणा देई वांदीनें जथोस्तित थानकें बेट्ठा। प्रभुजीइं धर्मदेशना कही। सिधाचलजीनो वर्ण(व) कह्यो। ते क्षा सीद्धाचलजीनो वर्णव सांभली, श्री सिधाचल भेटवानें भव्य जीव हर्षवंत थया। एहवें चक्रआउध राजाई हाथ जोडिनें परमेस्वरजीने विनंती करी, "हे स्वामी! श्री सिधाचलजीनां संघवीनी मुझने अनुमत द्यो।" तिवारें परमेश्वरजीनां मुख आगलें इंद्रे सोनानो थाल धरयो, वांसे पुरयो थको, तिवारें चक्रआयुध राजानें परमेंस्वरें मस्तकें वासखेप नाख्यो। संघवी पद थाप्युं। इंद्रमाल पेहरावि, तिहांथी उछव सहित घरे आव्या। देशदेसें कंकोत्तरी लखी। संघ एकठो मलयो। इंद्रे देरासर आणि आपुं। मणिमय श्री शांतिनाथ परमेश्वरजीनी मुरतः मणिमय थापि देरासर आगले चालें। मंगलीक काम करी सर्व संघ सहित श्री सिधाचलजी आव्या। गिरिराजानो दर्शन देखी मोतिइं गिरिराज वधाव्यो। तिहां स्वामिवछल करयो। मुनिने संतोषी श्री सिधाचलजी उपरें चढ्या। तिहां श्री ऋषभदेवजी ने भेटीने पुजा-स्नात्र मोहोछव करी, अट्ठाहि करीने पाछा हेठा उतरें छे, तेहवें तिहां परमेस्वरजीना जिर्ण प्रसाद दीट्ठा। तिवारें भरत चक्रवर्तीनि परें प्रसाद कराव्या। भरत राजानी परें तिर्थ फरसना करी घरे आवी पुत्रने राज्य आपी, श्री शांतिप्रभुजी पासे चारित्र लेइ विश्रूध मन वचनें चारित्र पालि केवलज्ञान पाम्या। एक मासनी संलेखणा करी घणा मुनिराज सांघाते श्री समेतसिखरे सिधपद वरयां, मोक्ष पाम्यां। अनदा समयनें विषे श्रि संतिनाथ परमेश्वर पाछलि वेलाई सिंह नामें उद्यान में विषं आवि समोसरयां। तिहां एक सिंहकमर कषाइ भरयो फाल देई परमेंसरजी उपरेंः आव्यो। तिहांथी पाछो पड्यों तिवारें बिमणो कषाइं भराणो। तिवारें बीजी वार वलि फाल दीधीः, तिम ज पाछो पड्यो। तिम वली घणो कषाय भराणो। तिम वलि त्रीजी वार फाल दिधी, तिम पाछो पड़यो। तिवारे सिंह विचारवा लागो, "कोईक ए मोटो पुरुष माहरां वनमा आव्यो छे, तेहने में अवज्ञा करी। अहो माहरि कुण गति थासे?" तेहने परमेसरे पुरवभव कहिने प्रतिबोध्यो। तिहां सिधाचलजीना सिंह उद्यानने विषे अणसाण करी: आठमे देवलोके गयो। तिहथी अवधिई करीनें जोयु। हु स्यें पुण्यः करि देवतापणुं पाम्यो। तिहां शांतिनाथ परमेश्वरजीनो उपगार जाणी सिंहवनने विर्षे परमेसरजीनो प्रसाद नीपजाव्यो। तिहां परमेसिरजीनी पुजा भक्ति करें, देना मनोवंछित पुरै। तदाकालथी ते वन नाम 'सिंहवन | तिर्थ' प्रवत्तूं। पटवर्शन
SR No.032780
Book TitlePat Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana K Sheth, Nalini Balbir
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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