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________________ कैलाबो लिवारें स्वस्तिकदेवतादरीजलेमें श्रीविमलावला जानियागा तिवारसागरनेचिनातीकरीरिखा वाईदरीवासगावेगनोरहो एवाश्रीअनिवनाथने वारंसगरचकवर्मिसंघकाहीनेउछारकस्यो श्रीप्रमिनापक श्रीसिहाचाननिथी विहारकरसाहावा योतामुसासनसिंहसे नयमपाधएकलामसाकफान्गुणधमधएक लापत्रासहजार साधवी बेलाष पहजारमाधक पांच नाष चोपनजाराविना साहायाराधनषदेहमा बो दस्त्रयरुपमधात शिकानिधीरजाप्रसमसाथंग्राम मिषरनपरेसिधिपदबस्वाभाएवाप्रीअतितनाथबि जापरमेस्वरीनावावासावाऽनुनमस्कानीमुत्रि गिरीश्रीविमलाचान्नागिरीन मोनाम:श्रीश्रीश्री बीजा श्री अजितनाथ परमेश्वरजी में परिणाम होजो।2 श्री सिद्धाचलजी उपरें अजितनाथ परमेश्वरजीः चोमासु रह्या। तिहां सुधर्मा एहवें नामें पोतानो शिष्य साथे पाणीनोः संबल लेई श्री सिद्धाचलजी उपरें प्रभुजिनां दर्शननें आवे छे। एहवें मध्यान समें थया छ। मुनि उदक भाजन मुकीने विसामें बेट्ठा। एहवें अकसमात कागडें झडप मारी, पाणि ढली गयु। मुनिने कषाय उपनो। तिवारें मुनिइं कागडाने सराप दीधो, "जा रे! दुष्ट पापी पंखी ताहरु इहां काम नहीं!" तदाकालथी ए तीर्थ उपरथी कागडो गयोः / मुनिइं विचारु, जे माहरा परणाम बगड्या, तिम बीजाय कोयना बगडे, ते सारु नहीं, ते माटे सदाय फासुं पांणि हज्यो। तदा कालथी ते ठेकाणे उलखझोल थई। ए परमेश्वरजी आव्या। ते मुनीने का, "तुमारी कार्यनी सिधी इहां छे। ते मुंनी तिहां अणसण करी मोक्षं गया। तिवार पछि अजितनाथ परमेश्वरजीना समवसरणनी रचना थई / ते समवसरणनें विषं बेंसीने देसना कही। धर्मदेसना सांभली अनेक प्रांणि वितरागनी वाणी चितने विषे आणि प्रतिबोध पांमी चारित्र लेई सकल कर्मः क्षय करी परम पद पाम्यां। नमो श्री अजिताय नमः। 121 ए श्रि सिद्धाचलें ने विर्षे सगर चक्रवर्ति तेहुना पूत्र जिनकुमार साठ हजार ते सगर चक्रवर्तीनी आज्ञा मांगीने अष्टापद तिर्थे पोता। ते तिर्थनी जात्रा करीने घणी - पाम्यां। अ (ने) जाणुं जे आगले पंचम काल विषम छे, एतलां माटे तिर्थ पछवाडे खाई होइं तो तिर्थनूं रोखोपुं थाई, एहवं विचारीने ते दंडरत्ने करीने अष्टापद पछवाडें हजार जोजन एकनी खाइ करी। ते खाइ खोदतां भुवनपतिना देवताना भुवननें विषं उपघात थावा लागो। तिवारें भुवनपतिना देवता कोपायमान थावा लागा। तिवारें एक कोरे जोवें तो अष्टापद तिर्थ, एक कोरे सगर चक्रवर्त्तिना पुत्र, एहवो विचारीने कोप समावीनें जिनुकुमरने 2. यहां पूर्ति के लिए निशानी की गई है मगर मूल पाठ में कहीं पर भी वह पूर्ति नहीं पाई जाती है जिससे यहां पूर्ति नहीं की गई है। पटदर्शन
SR No.032780
Book TitlePat Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana K Sheth, Nalini Balbir
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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